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तन्हा दूर कोई अपना सा
याद आ गया आज
फागुन की रुत फाग जगाये
सोये भाव जगा गया आज ।
हुआ सिंदूरी क्षितिज का अंचरा
नीले नभ मैं फैल गया
यादो की ठप्पे दार चुनरिया
पवन उड़ा कर खोल गया ।
महक रही केसर की क्यारी
तेरी यादों से भीनी
चटख चटख कर कालिया महकी
याद आ गई सावन की ।
झिरमिर सा यादो का मेला
इत उत झूले सा डोल रहा
साँझ ढले कोई यायावर
मन राहो से चला गया ।
चुभने लगा रंग सिंदूरी
रतनारे सब रंग चुभे
नयन मूंद चुप होजा मनवा
अब भोर कहां जो शितिज रंगे।
डा इन्दिरा✍️
बहुत सुंदर बिटिया
ReplyDeleteप्रणाम चाचा जी और आभार
Deleteये बढिया किया आपने अपना ब्लॉग बना लिया
Deleteबहुत सुंदर
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 28फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteहुआ सिंदूरी क्षितिज का अंचरा...
ReplyDeleteवाह.. लाजवाब, आदरणीया...👌👌👌👏👏👏
शब्दों की तीखी छैनी से भावों को गढ़ पाना आसान नहीं है। आपकी इस विशिष्टता के प्रति श्रद्धाभाव🙏
बहुत सुंदर
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