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Showing posts from April, 2018

कर्म

कर्म मनु ... कर्मठता जीवन का गहना कर्म जीवन आधार कर्म बिना मेरे मनुज ये जीवन है बेकार ! अकड़ खड़े बांस को देखो करनी कैसे नरम बना देती जीवन का ये सत्य उजागर बांस टोकरी भी करती ! नरम रहे तो काम आओगे चाहे जैसे भी जग  में कड़क बांस टूट ही जाता रहता नहीं किसी ढंग मैं ! नरम बांस की टोकरी दे रही गुरु ज्ञान सूखे की बस यही सजा जाते है शमशान ! डा इन्दिरा ✍

वीरांगना रानी द्रौपदी

वीरांगना रानी द्रौपदी ✊ धार क्षेत्र की क्राँति की सूत्र धार ! क्रमशः 11 अंग्रेजों ने चाल चली अवयस्क आनंद राव को मान्यता दी सोचा एहसान तले दबेगी  रानी विद्रोह नहीं कर पायेगी ! 12 पर रानी ने अमझेरा राज्य की सेना को साथ मिलाया सरदार पुर पर किया आक्रमण अंग्रेजों को मार भगाया ! 13 भीम राव रानी के  बड़े भाई  क्रांति वीर स्वाभिमानी साथ सदा रानी का देते क्रांति की मशाल सदा थामी ! 14 31 अगस्त क्रांति कारियों को सुद्र्ड किला सुपुर्द किया रानी द्रौपदी ने  पूर्ण समर्पित  क्रांति कारियों का साथ दिया ! 15 अंग्रेज कर्नल भड़क गये रानी की मन मनानी से वो रानी की बात मानते पर रानी डरती नहीं थी उनसे ! 16. फिर भी उनको भय था भारी रानी बड़ी साहसी है मध्य भारत मैं क्रांति भाव की वो ही प्रसार अधिकारी थे ! 17 रानी  की क्रांति प्रेरणा पाकर मध्य काल मैं धार मैं विद्रोह हुआ जिसका डर था अंग्रेजों को वही  कार्य समपन्न हुआ ! 18 नाना साहब भी आस पास रानी को समर्थन देते थे द्रौपदी के शौर्य की सदा भूरि प्रशंसा करते थे ! 19  नेता गुलफाम बादशाह खांन सआदत खांन , स्वयं रानी अँँग्रे

वीरांगना रानी द्रौपदी

वीरांगना रानी द्रौपदी धार क्षेत्र क्राँति की सूत्रधार .! रानी द्रौपदी निसंदेह ही एक प्रसिद्ध वीरांगना हुई है जिनके बारे मैं लोगों को बहुत कम जानकारी है ! छोटी से रियासत की रानी द्रौपदी बाई ने अपने कामों ये सिद्द कर दिया की भारतीय ललनाओ मैं भी रणचण्डी और दुर्गा का रक्त प्रवाहित है ! धार मध्य भारत का एक छोटा सा राज्य जहां के  निसंतान  राजा ने  देहांत के एकदिन पहले ही अवयस्क छोटे  भाई को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया 22 मैं 1857 को राजा का देहांत हो गया ! रानी द्रौपदी ने राज भार सँभला ! रानी द्रौपदी के मन मैं क्राँति की ज्वाला धधक रही थी रानी के राज संभालते ही क्राँति की लहर द्रुत गति से बह निकली ! रानी ने रामचंद्र बाबू को अपना दीवान नियुक्त किया वो जीवन भर रानी के समर्थक रहे ! सन 1857 मैं रानी ने ब्रितानिया का विरोध कर रहे क्रांतिकारीयों  को पूर्ण सहयोग दिया सेना मैं वेतन पर अरब और अफगानी सैनिक नियुक्त किये जो अंग्रेजों को पसंद नहीं आया ! अंग्रेज रानी द्रौपदी की वीरता और साहस को जानते थे सम उनका खुल कर विरोध नहीं करते थे ! और रानी कभी अंग्रेजो से भयभीत नहीं हुई उनके खिलाफ क्रँतिक

सुत जागो

सुत जागो ✊ रक्त मैं उबाल हो उच्च माँ का भाल हो शंख नाद बज रहा उठो माँ के लाल हो ! जागो सुत अर्जुन भीम नकुल जागो हे धीर वीर कर्ण जागो सुखदेव भगत जागो घर मैं घुस आया सियारो का झुंड ! शिवा प्रताप तुम भी दौड़ो अरि अश्वों के मुख को मोड़ों थर थर कांप रही धरती आओ नये  ख्म्ब गाडो ! कुम्भकर्ण सी निद्रा त्यागो सिंह की दहाड़ हुंकार करो गन्डिव धनुष तुम टन्कारो माता की सुत की लाज रखो ! जागो मेरे रज कण जागो धवल दुग्ध बूंदें जागो तुम्हें कसम माँ की लोरी की श्वासों मैं प्लावित स्पंदन जागो ! डा इन्दिरा  ✍

बूँद

बूँद 💦 दो बूँद जल के खातिर कितना है संघर्ष अब तो दोहन रोको जल का त्रस्त हो रहा है अब मन ! डा इन्दिरा ✍

तम ही तम

तम ही तम ..☘ ग्रीष्म ऋतु मैं जैसे वल्लरी झुलस झुलस  कुम्ल्हा जाये कोमल भाव तंतु से जलते बिन कहे विसर्जित हो जाते ! ज्ञान चक्षु  भी शून्य निहारे बिसर गया सब ध्यान नमन गठरी जैसा भाव विहीन मन ताक रहा सुना सा गगन ! चातक अब मौन  हो रहते नहीं कुहुक कोयल की है आम्र मंजरी झड़ झड़ जाये सौरन्ध्री  नहीं महकती है ! स्वाति बूँद नक्षत्र विसर्जित अंतर मन घनघोर तपन काव्य लेखनी सृजन करें क्या विस्तार ले रहा  तम ही तम ! डा इन्दिरा ✍ बौद्धिक दिवस पर समर्पित सृजन 🙏☘

अस्तित्व मेरा

अस्तित्व मेरा 👣 अस्तित्व पा रही माँ  तुझ मैं मेरा विघटन मत करना श्वास लेऊ और पंख फैलाऊ इतना बस माँ तुम करना ! अभी अर्ध विकसित सी हूँ कुछ दिन ध्यान मेरा रखना कन्या भ्रूण हूँ  ठुकरा ना देना मुझको विघटित ना करना ! भक्षक नहीं रक्षिता है तू मेरा  रक्षण भी करले मैं भी नारी तू भी नारी इसी रीती का ध्यान धर ले ! गर पाऊ  अस्तित्व पूर्ण तो जग अभियंता बन जाऊंगी अग्नि शिखा सम व्याप्त रहूंगी माँ तेरा आभार मनाउगी ! डा इन्दिरा ✍

अस्तित्व

अस्तित्व 🍃 अस्तित्व कहाँ तन का रहा अब केवल परछाई है हवस मिटाने वाले तन  मैं बदनीयत की बादशाही है ! यहाँ वहाँ सिर्फ पाप व्याप्त है अस्तित्व मैं रहना अभिशाप है ऊज्वल्ता बनी स्वयं शाप है मर्मान्तक पीड़ा का राज है ! तू इतना तो मैं क्या कम हूँ तुझसे अधिक मैं अधम हूँ छूत रोग सा अहम बना है मैं ही मैं बस मैं ही मैं हूँ ! अस्तित्व का तो विलय हो गया गंदे नाले का पर्याय हो गया निष्कलंक अस्तित्व  कहाँ अब उसका तो इंतकाल हो गया ! अफसोस हो रहा है मन को खाली सा शब्द कोष हुआ अस्तित्व के खातिर जीते मरते अनमोल भाव वो गौण हुआ ! डा इन्दिरा ✍

भ्रामक सा मन

भ्रामक सा मन ☘ भ्रामक सा जीवन हुआ भ्रामक से अल्फाज भ्रामक सा उदघोष है मेरा देश महान ! पशु और इंसान की हुई एकसी जात कचरे से बीन खा रहे दोनों एकही साथ ! मूक समझौता हो गया भूख मैं चुपचाप जीना है तो लेना होगा आधा आधा नाप ! अध पेट अध नंगा जीवन होता  है निष्पाप मिल बांट कर खा रहे ना झगड़ा ना संताप ! द्रवित हृदय की आज कलम से पिघल गये जज्बात पापी पेट के खातिर इंसां नर से पशु हुई जाय फिर भी .....नारा बड़े जोर का मेरा देश महान ! ! 🙏 डा इन्दिरा  .✍

नन्ही दुआ

नन्ही दुआ 🙏 नन्ही दुआ फर्श से अर्श तक कह रही प्रभु मेरी सुनन आओ प्रभु फिर बनो नरायण हर द्रौपदी का दुख हरना ! हम अजन्मे मारे जा रहे गर्भ ग्रह मैं ही शक्ति दो अपने वजूद के खातिर लड  सके ऐसी कोई युक्ति दो ! वैसे तो मेरा काम नहीं ये तेरा काम कहाता है पालक ही जब मुँह मोड़े तो पालित पर कहर बरसता है ! त्राही त्राही  हर रोज पुकारे त्राही त्राही का नाद गूंजे हे प्रलयंकर हे करुणाकर अब तो हम पर रहम करो ! कैसी दोगली नीति इनकी बेटी नहीं पर बहु चाहिये वो भी सिर्फ जने ही बेटे ऐसी एक मशीन चहिये ! भूल गये विस्मित हूँ में भी क्यों पुरुष समझ नहीं पाता नारी के घटते अस्तित्व मैं उसका ही होगा घाटा ! मातृ शक्ति के बिना पुरुषों का जन्म कहाँ से होगा कन्या भ्रूण के साथ हनन पुरुष भ्रूण का भी होगा ! सोच नहीं पा रहे अभिमानी गर पुरुष वर्ग ही रह जायेगा मातृ वर्ग के बिना नपुँसक संतति सुख से वंचित होगा ! प्रजनन भाव नहीं होगा तो उर्वरा कहाँ से आयेगी बंजर होगा पूरा समाज जीवन पर पूर्णविराम लगायेगी ! डा इन्दिरा ✍

जीवन गणित

जीवन गणित ?+=% जीवन कब क्यूँ बीत गया सोच रही बैठी निष्काम हर एक झुर्री कहती है उसके जीवन का संग्राम ! बुझी बुझी पलकों मैं अब भी कुछ गीला सा रुका हुआ सूखे अधरों पर अब भी है लोरी के कुछ छंद जवां ! हाथ लरजते है जब अब भी देने को आशीष खाली हवा सी बह जाती है तले नहीं होता कोई शीश ! क्या खोया क्या पाया मेने उठ रहे सवाल पर सवाल कहाँ जोड़ना कहाँ घटाना कहाँ बिगड़ गया हिसाब ! ज्यादा कहाँ कहाँ कम रखा कहाँ चूक गई मैं आप लगा रही ममता निशब्द सी पूरे जीवन का गुणा भाग ! डा इन्दिरा ✍

पृथ्वी दिवस

पृथ्वी दिवस ...🐒 प्रथ्वी दिवस मना रहे है चहुंओर है शोर पृथ्वी असमंजस मैं तकती है क्या दूजी पृथ्वी है कोई और दूजी पृथ्वी है और जिसका दिवस मनाते है मुझको तो हर पल हिस्सों में ही बांटे जाते है ! जातीबाद के झगड़े आंदोलन और व्यभिचार करें जाते किस पृथ्वी को बचाने के नारे हर वर्ष लगाते ! मैं कृष काय हुई जा रही कहाँ ये वृक्ष उगाते है जहरीली बस हवा हो गई विषाक्त मुझे बनाते है ! पृथ्वी दिवस का शोर मुझे हर पल त्रास देता है माता जैसा समझो मुझको बस ये भाव ही सुख देता है दिवस एक दिन के ये नारे मुझको व्याकुल कर देते पुनः साल भर के लिये कहीं विलुप्त से हो जाते ! सुनो पुत्रों धरो ध्यान ये हनन स्वयं का करते हो पृथ्वी पृथ्वी चिल्लाते हो उसको ही काटे जाते हो ! एक दिवस रख लेने भर से मेरा उद्धधार नहीं होगा हर दिन मेरा ध्यान रखोगे तभी निवारण कुछ होगा ! डा इन्दिरा ✍

विरह रस व्यापे

विरह रस व्यापे काहे विरह रस व्यापे राधिका बीत गई रतिया सारी भोर भये तक इंतजार कर कैसे बीती  रैन बेचारी ! पलक ना झपकी रैन बीत गई छाय गई उषा रतनारी सवितु आये जाये यामिनी जिया संभालो राधे प्यारी ! दिनकर आगमन .विदा दिवाकर रजनी जावन की तय्यारी कछु तो सुध लो वृष भानु सुता तुम अब ना अईंहै निष्ठुर बनवारी ! आते तो सखी जाते काहे काहे तोसे प्रीत लगाते प्रीत लगाते वाय निभाते यूं पल मैं ना बिसराते ! उठो सखी अब रैन बीत गई रैन के संग ही बात गई लम्पट .निपट अनाड़ी , ढोंगी से नाहक ही प्रीत भई ! वो भये द्वारिकाधीश सखी राजा महाराजा बड़े बने हम जैसी उन्हें बहुत मिलेगी तासे हमकू बिसर गये ! तीन लोक के स्वामी कान्हा हम ठहरी ग्वालिन छोटी कहाँ याद रहेंगे हम तुम वोतो ठहरे त्रिपुरारी ! एक बात सांची कहूँ कान्हा नीक नहीं किन्हीं मोसे प्रीत लगा कर भूल गये जा नाय मिलूंगी अब तोसे ! भर उसाँस राधे जब लीन्ही अंखिया नीची कर लीनी भूले से आंसू ना दीखे धरा ओर मुख कर लीनी ! मधुबन भीतर विरह व्याप गयो खग , मृग , वृंद सभी सूखे छीजत छीजत कृष भई राधे श्वास हिया पजरन लागे ! एक अरज सुन लो मेरी

वीर बहुटी ✊वीरांगना अवंतिका बाई

वीरांगना अवंतिका बाई लोधी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख सूत्रधार ! क्रमशः 14 ऐसा कानून बनाया जालिम  ने नाम " कोर्ट ऑफ़ वर्ड्स " रखा इसके अंतर्गत रामगढ को हथियाने का षडयंत्र रचा ! 15 तहसीलदार रखा अंग्रेजों ने रामगढ को आधीन किया पेंशन मुकर्रर करदी एक रानी से ना सहा गया ! 16 पर रानी ने शांत भाव रख अपमान का घूंट पी डाला अनुकूल समय का इंतजार करने लगी चतुर बाला ! 17 सन 1857 में जब क्रांति का था ज्वार उठा रानी के कानों तक भी निनाद उसका जा पहुंचा ! 18 फिर क्या था अवंतिका रानी ने एक ऐसा खत तैयार किया उसके साथ चूडियाँ रख कर जागीरौ मैं भिजवाया ! 19 खत मैं अंगार शब्द लिखे थे जो छाती को दग्ध करें हर देशभक्त के मन मैं अग्नि प्रज्वलित कर देवे ! 20 लिखा "देश रक्षा के लिये कमर कसो या चूड़ी पहन के घर बैठो धर्म ईमान की सौगंध लगे जो खत की खबर बैरी को दो " ! 21 कई जागीरदार उठ खड़े हुए जो रानी का साहस जानते थे साथ मिल गये रानी के रानी का शौर्य पहचानते थे ! 22 क्रांति बीज बोये रानी ने सभा - और महा सभायें की कानों कान खबर ना किसी को गुप चुप

यामिनी

यामिनी 🌌🌌🌌 चमक रहा है द्विग्णित होकर रजनी का अनुपम शृंगार नव षोडशी पिय द्वारे आई करके जैसे सोलह शृंगार ! निशा कालिमा हार गई जब चाँद सितारे चमके रात जुगनू आये बधाई देने पिया मिलन व्याकुल भई रात ! अम्बर से ओस रत्नाकर झर झर बिखरे सारी रात मुक्ता मणि से चमक चमक कर अगवानी सी करते बारात ! अवनि से अम्बर तक देखो उत्सव छाया सारी रात चली यामिनी गुपचुप गुपचुप किर किर जूगनू करें गुंजार ! चटख रूपहरी चूनर ओढ़ी चाँद चँदनिया लजा गई नैनन मैं इंतजार था भारी मिलन की आस जगाया गई ! डा इंदिरा ✍

वीर बहुटी ✊वीरांगना अवंतिका बाई लोधी

वीरांगना अवंतिका बाई लोधी . प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख सूत्रधार .! आज भी बहुत लोग ऐसे है जो रानी अवंतिका बाई के  बारे मैं कुछ जानते ही नहीं है ! इनका योगदान सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी नेता झांसी की रानी लक्ष्मी बाई  से कम करके नहीं आंका जा सकता ! पर हमारी पिछड़े वर्ग को नकारने की मानसिकता  ने हमेशा इनके बलिदान को नजर अंदाज किया ! वीरांगना अवंतिका बाई लोधी आज भी महराष्ट्र मैं  लोक काव्यों की नायिका के रूप मैं राष्ट्र निर्माण और देश भक्ति के रूप मैं प्रेरणा देती है ! महरानी अवंतिका बाई का जन्म एक पिछड़े लोधी राजपूत समुदाय में 16 अगस्त सन 1831 मैं गाँव मनकेहरी  जिला सिवती के झूझार  सिंह के यहाँ हुआ था ! उनकी शिक्षा गांव मैं ही हुई ! बचपन मैं ही उन्होने घुड़सवारी और तलवार चलाना सीख लिया ! लोग उनकी दोनों कलाओं को देख आश्चर्य चकित हो जाते ! वो एक वीर और साहसी बालिका थी ! जैसे जैसे वो बड़ी हुई उनकी इन कलाओं की ख्याति दूर दूर तक फैल गई ! फलस्वरूप उनका विवाह सजातीय लोधी राजपूत रामगढ़ रियासत मण्डला के राजकुमार विक्रमादित्य के साथ हुआ ! साहसी और जुझारू कन्या रायगढ़ रियासत की