जाय रहे हो मथुरा कान्हा
हाय तुम्हें कैसे रोकू
जाते जाते मधुर बाँसुरी
एक बार सुना मोकु !
ऐसी तान बजा दे कान्हा
कछु ना मोकू भान रहे
मथुरा , वृंदावन ,मधुबन गलियाँ
ना बृज कुँज आभास रहे !
पलक उघाडू तू ही दीखे
मुंदे नयन तोहे देखूँ
हर स्वर बंसी को बन जाये
जो भी जाके बोल सुनूँ !
तन चाहे वृंदावन डोले
मन तेरे संग चलो चलैं
अंतर मन मैं रख ले मोहे
बिन तेरे कैसे जियूँ मरूं !
कर्ण माही बजे बंसी स्वर
आँखन मैं छवि याकी रखूँ
याके साथ तू भी दीखेगौ
जासे तोसे इसरार करूँ !
डा इन्दिरा ✍
वाह!!! बहुत खूब बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteवाह मीता सुंदर बहुत सुंदर
ReplyDeleteऐसी रागिनी छेड मुरारी
जोधुन सुनी हो राधा मतवारी।
अच्छी रचना... बृज भाषा में सुंदर गीत सृजित....
ReplyDeleteउघाडू/उघारू....(टंकन त्रुटि)
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