Skip to main content

अल्फाज

अल्फाज

इंतजार .इजहार .गुलाब .ख्वाब .वफा नशा
तमाम कोशिशें सबको पाने की सरे आम हुई !

गहरे अल्फाज गहरी थी बातैं गहराई तक बात गई
गहरे जब उतर के देखा सारी कोशिश बेकार गई  !

गफलत की थी सारी बातै गलतफहमी हर बार हुई
कैसे पहचाने सच्चाई .नकली आंसू नकली मुस्कान हुई !

एहसास एक और बेशुमार.. लफ्जों की  बरसात
एक लफ्ज"नेह" के खातिर नाहक इतनी जहमत की !

हर अल्फाज कलम नोक पर आकर मेरे ठिठक गया
लफ्ज लफ्ज पर्याय सरीखा शब्द ग्रंथ सी बात रही !

डा इन्दिरा  ✍

Comments

  1. बहुत सुंदर
    मन को भा गई आप की रचना
    बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया शुक्रिया ...आपकी रचना से लिया इल्म काम कर गया ..इसलिये लेखन कुछ तारीफ के काबिल बन गया !
      😁😀🙏

      Delete
  2. अरे वाह्ह..मस्त..।बहुत सुंदर रचना प्रिय इंदिरा जी..👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया प्रिय श्वेता जी ...आपकी मस्त प्रतिक्रिया आनंदित कर गई

      Delete
  3. वाह!!बहुत खूबसूरत !!

    ReplyDelete
  4. वाह वाह !! बहुत सुंदर रचना
    अल्फाजों का सुंदर प्रयोग इंदिरा जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया ....अल्फाजों का ही तो सारा किस्सा है पूजा जी ..जिंदगी का फलसफा ये अल्फाज ही तो है

      Delete
  5. वाह! !
    जहमत उठाने को दिल बेताब था
    वफा की हर कोशिश ही बेकार गई।
    बहुत उम्दा मीता

    ReplyDelete
  6. सही लाइनें पकड़े हो मीता ....काव्य की आत्मा तक पहुंच गये और क्यों ना पहुंचते मीता जो हो ...👍👍👍👍👍👍👍
    आभार !

    ReplyDelete
  7. वाह!!!
    बहुत लाजवाब....
    अद्भुत शब्दविन्यास...

    ReplyDelete
  8. जज़्बात जज़्बात जज़्बात

    वाह मजा आ गया
    सुबह सुबह इतनी अच्छी रचना पढ़कर

    मुझे नहीं पता था कि मेरे शेर को आधार बनाकर इतनी अच्छी रचना रची जा सकती है।
    आभार।

    ReplyDelete

  9. आपकी जब कलम चली तो हर बात खास हुई..
    बहुत सुंदर अल्फ़ाज़

    ReplyDelete
  10. एक लफ्ज़ नेह की खातिर ज़हमत.... सूंदर लेखन इंदिरा जी शुभकामनाये नेह और मोह ही तो है रिश्तों और दुखों का आधार

    ReplyDelete
  11. गहरे अल्फाज गहरी थी बातैं गहराई तक बात गई
    गहरे जब उतर के देखा सारी कोशिश बेकार गई !
    बहुत सुंदर लेखन प्रिय इंदिरा जी -- सस्नेह --

    ReplyDelete
  12. खूबसूरती से गुँथे हुए शब्द और भाव ! बधाई सुंदर रचना के लिए। सादर।

    ReplyDelete
  13. जितनी सुंदर उतनी ही गहरी
    लाजवाब रचना 👌

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वीरांगना सूजा कँवर राजपुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई

वीर बहुटी वीरांगना सूजा कँवर राज पुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई ..✊ सन 1857 ----1902  काल जीवन पथ था सूजा कँवर  राज पुरोहित का ! मारवाड़ की ऐसी वीरांगना जिसने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम मैं मर्दाने भेष में हाथ मैं तलवार और बन्दूक लिये लाड्नू (राजस्थान ) में अंग्रेजों से लोहा लिया और वहाँ से मार भगाया ! 1857 से शुरू होकर 1947 तक चला आजादी का सतत आंदोलन ! तब पूर्ण हुआ जब 15 अगस्त 1947 को देश परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त हुआ ! इस लम्बे आंदोलन में राजस्थान के योगदान पर इतिहास के पन्नों मैं कोई विशेष  चर्चा नहीं है ! आजादी के इतने  वर्ष बीत जाने के बाद भी राजस्थानी  वीरांगनाओं का  नाम और योगदान कहीं  रेखांकित नहीं किया गया है ! 1857 की क्रांतिकी एक महान हस्ती रानी लक्ष्मी बाई को पूरा विश्व जानता है ! पर सम कालीन एक साधारण से परिवार की महिला ने वही शौर्य दिखलाया और उसे कोई नहीं जानता ! लाड्नू  में वो मारवाड़ की लक्ष्मी बाई के नाम से जानी और पहचानी जाती है ! सूजा कँवर का जन्म 1837 के आस पास तत्कालीन मारवाड़ राज्य के लाडनू ठिकाने नागौर जिले ( वर्तमान मैं लाडनू शहर )में एक उच्च आद

वीरांगना रानी द्रौपदी

वीरांगना रानी द्रौपदी धार क्षेत्र क्राँति की सूत्रधार .! रानी द्रौपदी निसंदेह ही एक प्रसिद्ध वीरांगना हुई है जिनके बारे मैं लोगों को बहुत कम जानकारी है ! छोटी से रियासत की रानी द्रौपदी बाई ने अपने कामों ये सिद्द कर दिया की भारतीय ललनाओ मैं भी रणचण्डी और दुर्गा का रक्त प्रवाहित है ! धार मध्य भारत का एक छोटा सा राज्य जहां के  निसंतान  राजा ने  देहांत के एकदिन पहले ही अवयस्क छोटे  भाई को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया 22 मैं 1857 को राजा का देहांत हो गया ! रानी द्रौपदी ने राज भार सँभला ! रानी द्रौपदी के मन मैं क्राँति की ज्वाला धधक रही थी रानी के राज संभालते ही क्राँति की लहर द्रुत गति से बह निकली ! रानी ने रामचंद्र बाबू को अपना दीवान नियुक्त किया वो जीवन भर रानी के समर्थक रहे ! सन 1857 मैं रानी ने ब्रितानिया का विरोध कर रहे क्रांतिकारीयों  को पूर्ण सहयोग दिया सेना मैं वेतन पर अरब और अफगानी सैनिक नियुक्त किये जो अंग्रेजों को पसंद नहीं आया ! अंग्रेज रानी द्रौपदी की वीरता और साहस को जानते थे सम उनका खुल कर विरोध नहीं करते थे ! और रानी कभी अंग्रेजो से भयभीत नहीं हुई उनके खिलाफ क्रँतिक

वीर बहुटी जालौर की वीरांगना हीरा दे

वीर बहुटी जालौर की वीरांगना हीरा दे सम्वत 1363(सन 1311) मंगल वार  वैशाख सुदी 5 को दहिया हीरा दे का पति जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के पारितोषिक  स्वरूप मिले धन की गठरी को लेकर बेहद खुश घर को लौट रहा था ! उसे जीवन मैं इतना सारा धन पहली बार मिला था ! सोच रहा था इतना धन देख उसकी पत्नी हीरा दे कितनी खुश होगी ! युद्ध की समाप्ति के बाद इस धन से उसके लिये गहने और महल बनवाउगा और दोनों आराम से जीवन व्यतीत करेंगे ! अल्लाउद्दीन के दरबार मैं उसकी बहुत बड़ी हैसियत  समझी  जायेगी ! वो उनका खास सूबेदार कहलायेगा ! ऐसी बातैं सोचता हुआ घर पहुंचा ! कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए धन की गठरी पत्नी हीरा दे के हाथों मैं देने हेतु आगे बढ़ा .... पति के हाथों मैं इतना धन .चेहरे की कुटिल मुस्कान .और खिलजी की युद्ध से निराश हो कर जाती सेना का वापस जालौर की तरफ लौटने की खबर ...हीरा दे को धन कहाँ से और कैसे आया इसका का राज  समझते देर नहीं लगी ! आखिर वो भी एक क्षत्राणी थी ! वो समझ गई उसके पति दहिया ने जालौर किले के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फौज को बता कर अपने जालौर देश और पालक राजा