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Showing posts from June, 2018

विरहन का संताप

बिरहन का संताप .... पावस ऋतु का आगमन बिरहन का संताप नित करें शृंगार बावरी साँझ गये बेकार ! साँझ  गये बेकार जतन से सज धज बैठी आये ना सखी कन्त और ना पाती भेजी ! टूक टूक हिय है गयो चुभन लागो  सिंगार पावस ऋतु शीतल पवन अग्नि सी पजराय ! अग्नि सी पजराय तनि भी चैन ना पाऊ पी पी की पुकार सुन में कुर्जा सी कूर्राउ  ! बूँद परे जब तन पर मेरे दूनी प्यास जगाये मेह आओ रटे मयूरा तृष्णा मन की दोहराये ! डा इन्दिरा  ✍

वीर बहुटी रानी जवाहर बाई

वीर बहुटी रानी जवाहर बाई .. सतीत्व की रक्षा और देश भक्ति की अद्भुत मिसाल वीरांगना जवाहर बाई मेवाड के महाराणा संग्राम सिंह के विलासी और एक अयोग्य शासक राजकुमार विक्रमादित्य की  पत्नी थी ! महाराणा के मरते ही राज्य की बागडोर पुत्र विक्रमादित्य  के हाथ मैं आ गई पर वो अय्याशी में इतना डूब गये की पड़ोसी राज्य से युद्ध करने मैं असमर्थ रहे  !  और पड़ोसी राज्य के  दुश्मनों ने उनको हरा दिया! दुश्मन सेना नगर में प्रवेश करने वाली थी ये खबर रानी जवाहर बाई तक पहुंची ...राजपूती रवायत के अनुसार तुरंत जौहर की तैयारियां होने लगी ! पर सशक्त और  वीर रानी जवाहर बाई ने उन राजपूती नारियों को कहा ...........वीर क्षत्राणियों जौहर करके सिर्फ अपने सतीत्व की रक्षा करोगी तलवार उठाओ दुश्मन से लड़ते लड़ते  देश रक्षा हित मरो और अमर हो जाओ ! जब मरना ही है तो वीरों की मौत मरो ! युद्ध मैं शत्रुओं का खून बहा  कर रण गंगा में स्नान कर अपने जीवन को ही नहीं मृत्यु को भी सार्थक बना  दो ! बस फिर क्या था रानी जवाहर बाई की ललकार सुन जौहर करने को उद्दत अनेक राजपूत ललनाये हाथों में तलवार थाम कर युद्ध के लिये खड़ी हो गई ! चित्त

बदरा भये सुरँगी

बदरा भये सुरँगी .... गरज लरज ये कौन आ रहा कौन आवन की बजे दुंदुभी भगदड़ सी मच रही नभ माही जल भर बदरा भये सुरँगी ! पुरवाई भी छेड़न लागी पात पात से खेलन लागी पुहुप बिहँस करें सब बतिया कौन आ रहा हमरी गलियां ! कहीं कुहुक बोले कोयलिया पंचम स्वर बोले रे पपीहरा आद्र स्वर मयूर मुख बोले मेहर आओ सरसे पावसिया ! बूंद एक चातक खग  मांगे त्रसित भाव पावस ऋतु जागे वर्षों मेघ धरा तर करदो तृप्त होय सब प्यासी नजरिया ! त्रसित भाव सब सरसन लागे ज्यू विरहन घर आये संवरिया बरसों मेघ धरा हरियाई हरी है गई धानी चुनरिया ! डा. इन्दिरा ✍

वर्षा काल

वर्षा काल ... अंगड़ाई ली मेघ ने अम्बर हुआ गुलाल इंद्र धनुष पर बैठ कर आया वर्षा काल ! आया वर्षा काल दादुर जी  वक्ता है गये गाये मोर पपीहरा सगरे कवि गण बन गये ! भँवर कहाँ पीछे रहे वाकी अनोखी जात फूल फूल रस लेत है जबरन गीत सुनाय ! जबरन गीत सुनाय तितलियाँ  सुग बुग करती फूलन पर जाके बैठ रंगों से ही बातें करती ! इत लतिका लहरा रही गात कामिनी चाल लिपट वृक्ष संग कर रही कछु खेलन की बात ! झिरमिर झिरमिर मेघ ने खोल दिये सब द्वार बरसों  घन अति जोर से भर गई सब की प्यास ! डा .इन्दिरा ✍

मौन शोध

मौन शोध .... मौन तोड़ क्यूँ बात करें पुनि घात और प्रतिघात करें बेहतर थोड़ा सा चुप रह कर मन से मन की बात करें ! चिंतन और मनन की संतति मौन सुपुत्र सा ही साजे रार प्रतिकार उसे नहीं भाता हर मन का संताप हरे ! मौन विधा अति सुन्दर सुथरी कभी ना कोई अहित करें ना दूजे का ना ही खुद का मौन  रहे बस शोध करे ! डा इन्दिरा  ✍

घिर आई बदरिया

घिर आई बदरिया ...🌱🌿 आज सखी घिर आई बदरिया पावस ऋतु  हरखे पुरवय्या पात पात हरियायेंगे ऐसे प्रिय आवन ज्यू मिले खबरिया ! आज सखी ............🐝 गौरैय्या चहुँ फुदकन लागी गाये मोर बौरायौ पपिहरा गड़गड़ाय बदरा यूं गरजे बाजे जैसे झाँज झाँझरिया ! आज सखी .............🐝 त्रसीत धरा बरसे कछु ऐेसे अमि कलश बिखरे  गागरिया हरख हरख मन भयो रे बावरों दौउ नयन खंजन दृग भरिया आज सखी .......🐝 आओ मंगला  चार करें सब चौक पुराओ बाँचो चोघडिया कुमकुम अक्षत घोलो गेरुआ पुनि पाहुन बन आई बदरिया आज सखी ......🐝 डा इन्दिरा  ✍

अहसास

अहसास ...💦 रेत का जर्रा हूँ कुछ नमी लिये हुए मुट्ठी में भींचे हूँ कुछ अश्क सूखे हुए ! मारिचिका सा लुभाता कहीं दूर कोई ख्याल सूखे लबों पे प्यास की हसरत लिये हुए ! डा इन्दिरा  ✍

वीर बहुटी रानी जिंद कौर

वीर बहुटी ..रानी जिंद कौर उर्फ जिंदा रानी .. क्रमशः 26 विदेश मैं दिलीप सिंह के सर जॉन बडे सहायक थे उनसे मदद मिली दिलीप को माँ को लेने नेपाल गये ! 27 पर हाय विडम्बना देखो विधि की रानी जिंद नेत्र हीन हुई देख ना पाई स्व पुत्र को सिर्फ गले लग कर रो दी ! 28 क्या समय रहा होगा वो जब माँ पुत्र का मिलन हुआ होगा वर्षों बाद मिली बेटे से पर हाय नयन दे गये धोखा ! 29 स्पर्श नेत्र से देखा होगा नेत्र हीन उस रानी ने वृद्ध हाथ काँप रहे होंगे जब लगी पुत्र के सीने से ! 30 दिलीप सिंह भी व्याकुल हो माता से लिपट गये होंगे बचपन के वो स्निग्ध भाव फिर से याद आये होंगे ! 31 मात पुत्र स्पर्श की भाषा मन में समझ रहे होंगे रानी के दोनों अंधे नेत्र सजल हो बरस गये होंगे ! 32 कैसा होगा अद्भुत द्रश्य लिखते कलम भीगती है उस समय दोनों पर क्या बीती होगी क्या कलम मेरी लिख सकती है ! 33 इंग्लेंड ले आये माँ को जो टूट चुकी थी पूरी पुत्र आस मैं जीती थी जो आस हुई थी अब पूरी ! 34 लाख जुल्म सह कर रानी ने गर्दन नहीं झुकाई थी विनती नहीं की थी कोई ना मांगी कोई रिहाई थी ! 35 जीवन के अंतिम

वीर बहुटी .रानी जिंद कौर

वीर बहुटी रानी जिंद कौर उर्फ जिंदा रानी ..🙏 पंजाब के राजा  रणजीत  सिंह की 20 रानियां थी  राजा की सबसे छोटी रानी थी जिंद कौर अद्भुत किरदार रहा उसका ! उसके अदम्य साहस की वजह से लोग उसे   "जिंदा रानी " कहा कहते  थे ! जिंद कौर राजा रणजीत सिंह जी की अकेली जिंदा संतान दिलीप सिंह की जननी थी ! राजा रणजीत सिंह के देहांत के बाद जिंद कौर एक  ऐसी  वीरांगना बन के उभरी जिन्होंने सिक्ख समुदाय को दुनियाँ के सामने ना हार जाने की हर सम्भव लड़ाई लड़ी ! जिंद कौर का विवाह भी किसी एक खास कारण से राजा रणवीर जी के साथ हुआ था ! राजा रणबीर सिंह के इकलौते वारिस  खड्ग सिंह के बिगडते स्वास्थ  से चिंतित क्या शायद समझ चुके थे की उनके बाद सियासी गद्दी संभालने वाला कोई नहीं होगा ! इसी कारण जिंद कौर की पिता से उनकी गुणवान पुत्री जिंद का हाथ मांगा और अपने से आधी उम्र की कन्या से विवाह किया ! शादी के कुछ समय बाद ही दिलीप सिंह का जन्म हुआ ! पर पुत्र का सुख राजा अधिक दिन नहीं देख सके ! स्वर्ग सिधार गये ! उनकी मृत्यु के बाद सिक्ख समुदाय बिखरने  लगा ! विश्वास घाती  अंदर ही अंदर सिक्ख ताकतों को पैसे के लालच मै

वीर बहुटी .रानी जिंद कौर

वीर बहुटी रानी जिंद कौर उर्फ जिंदा रानी ..🙏 पंजाब के राजा  रणजीत  सिंह की 20 रानियां थी  राजा की सबसे छोटी रानी थी जिंद कौर अद्भुत किरदार रहा उसका ! उसके अदम्य साहस की वजह से लोग उसे   "जिंदा रानी " कहा कहते  थे ! जिंद कौर राजा रणजीत सिंह जी की अकेली जिंदा संतान दिलीप सिंह की जननी थी ! राजा रणजीत सिंह के देहांत के बाद जिंद कौर एक  ऐसी  वीरांगना बन के उभरी जिन्होंने सिक्ख समुदाय को दुनियाँ के सामने ना हार जाने की हर सम्भव लड़ाई लड़ी ! जिंद कौर का विवाह भी किसी एक खास कारण से राजा रणवीर जी के साथ हुआ था ! राजा रणबीर सिंह के इकलौते वारिस  खड्ग सिंह के बिगडते स्वास्थ  से चिंतित क्या शायद समझ चुके थे की उनके बाद सियासी गद्दी संभालने वाला कोई नहीं होगा ! इसी कारण जिंद कौर की पिता से उनकी गुणवान पुत्री जिंद का हाथ मांगा और अपने से आधी उम्र की कन्या से विवाह किया ! शादी के कुछ समय बाद ही दिलीप सिंह का जन्म हुआ ! पर पुत्र का सुख राजा अधिक दिन नहीं देख सके ! स्वर्ग सिधार गये ! उनकी मृत्यु के बाद सिक्ख समुदाय बिखरने  लगा ! विश्वास घाती  अंदर ही अंदर सिक्ख ताकतों को पैसे के लालच मै