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कर्म रेख

कर्म रेख ....

कर्म रेख अति पारखी
पाथर की सी रेख
घिसत घिसत नाही घिसे
कर्मन को फल देत !
कर्म फल के कारणे
नारायण धरो शरीर
राम .कृष्ण और बावनौ
सब कर्मन की लिखों लकीर !
राजा. रंक .रकीब  सब
एक मनुज हुई जाय
जैसे जाके कर्म है
वैसो ही फल पाय !
एक पाथर मन्दिर पुजे
दूजों ठोकर खाय
एक तराजू तुल रहो
दूजों चाकू सान चढ़ाय !
एक शीश पर मुकुट है
दूजों शीश झुकाय
एक शीश मति भ्रम फिरे
रोजही पाथर खाय !
कर्म गति अति कठिन है
नाही कोई उपाय
करनी सब भरनी पड़े
चाहे मन कू नाय सूहाय !

डा .इन्दिरा .✍

Comments

  1. आदरणीया इंदिरा जी आपने इस रचना में
    कर्म रेखा की प्रासंगिकता को बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।

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    Replies
    1. स्नेहिल आभार अभिलाषा जी
      कर्म गति टारे ना टरे
      ये ही अखण्ड है बात
      प्रभु राम को कर्म से
      भोगना पड़ा वनवास

      Delete
  2. कर्म रेखा वाह दीदी जी
    बेहद खूब्सुरत लाजवाब उत्क्रष्ट रचना 👌

    ReplyDelete

  3. कर्म रेख अति पारखी
    पाथर की सी रेख
    घिसत घिसत नाही घिसे
    कर्मन को फल देत ! बहुत सुंदर रचना इंदिरा जी

    ReplyDelete
  4. वाह वाह मीता सुंदर कर्म संदेश
    जीवन सत्य को उजागर करते
    साधुवाद।

    रे प्राणी कर्म समो नही कोई
    कर्म हंसावे कर्म रूलावे
    कर्मा तना ऐ चाला
    रे प्राणी कर्म.....

    खोटे करमण के कारण
    जीवन में कष्ट है आवत
    कर के बुरे करम हे मानव तूं
    पीछे क्यों पछतावत
    कर्मों की गति बड़ी निराली
    छूटे ना राजा रंक,
    ना नल छूटे ना पांचो पांडव
    ना त्रिलोकी के फंद।

    रे प्राणी कर्म समो नही कोई।

    ReplyDelete
  5. वाहः बहुत खूब

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  6. बहुत ही सार्थक और विचारणीय रचना। विषय ,भाव,शब्द चयन सब बेहद खूबसूरत है। बहुत अच्छा लिखा।

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