एकाकी पथ ...
यायावर
एकाकी पथ में
सूनी सी बिन
हलचल में
खामोशी की
मूक फिजा में
तन्हा तन्हा चलने में !
कदम उलझते
आपस में ही
लगता कुछ
बातैं करते
एक बोले
उससे पहले ही
दूजा कुछ आगे बढ़ले !
साथ साथ
भासित से होते
पर साथ नहीं
समझ आता
तू चल में आया
जैसा नाता
बड़ा विचित्र सा भरमाता !
सदा साथ
रहते है फिर भी
भटके से
यायावर है
यही हो गया
अपने पन में
तन साथ मन गायब है !
साथ साथ
रहने का भ्रम है
साथी से
जज्बात नहीं
उलझा सा सब
अनसुलझा है
केवल चलने की बात रही !
साफ नही
पहचान किसी की
धुंधली सी
आकृति लगे
अंजाने
धुंध के पीछे
धुंधले से एहसास रहे !
डा इन्दिरा ✍
Bahut khoob di
ReplyDeleteवाह !!
ReplyDeleteतन साथ मन गायब है ....
शुक्रिया
Deleteवाह दीदी जी बेहद गहरी अभिव्यक्ती 👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर