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पत्थर का माँ / जीवित माँ

पाथर  की माँ / जीवित माँ

पाथर की माता ला रहे
खुश होकर घर आज
हंसी खुशी से सजा रहे
माता का  दरबार !

द्वार खोल खड़ा माँ खातिर
पूजन की करली तय्यारी
षटरस व्यंजन पायस मीठा
धूप दीप धरे भारी !  !

पर ....

घर के पिछवाड़े जिंदा माँ को
भूखा प्यासा मार रहे
बूढ़ी हड्डियाँ कांप रही
आंखों में पढ़ गये जाले !

जन्म दात्री को भूल के पगले
पाथर की माँ भजना चाहे
अज्ञानी समझा क्या माँ को
जो ऐसे घर आना चाहे !

घर के पूत कवारे डोले
पाडोसी  के हो फेरे
उल्टी रीत छोड़ दे मानव
माँ  की कदर तो तू कर ले !

लक्ष्मी , दुर्गा माँ सरस्वती
सब का उसमें  है निवास
जिसने तुझको जनम  दिया
सबसे पहले वो है  खास !

डा इन्दिरा  .✍
स्व रचित

Comments

  1. प्रिय इंदिरा जी -- आज ऑनलाइन होते ही सबसे पहले आपकी रचना पर नजर पढ़ी जिसमे मर्मान्तक चित्र मन बेध गया तो माँ के लिए लिखे गये आपके श्ब्दों ने मन के साथ आँखों को भी नम कर दिया | कहीं पढ़ा था कि एक समय की अन्नपूर्णा -- अपने अंतिम समय में एक एक रोटी की मोहताज हो जाती है | पर उसका कारण भी कहीं ना कहीं एक दुसरी नारी होती है | हमारी बेटियां जिन पर गर्व करते हम फूले नहीं समाते - वे ही बहुओं के रूप में संस्कार हीन हो जाती हैं तो जिन्हें इतनी कुर्बानियों से पाला होता है वहीसंतान मौसम की तरह बदल जाती है | बहुएं तो पराये घर से आई होती हैं - बेटे तो माँ के अपने हाथों से पले होते हैं | सच है पत्थर की माँ की इतनी पूजा और अपनी सजीव माँ की ये दुर्गति !!!!!!! पत्थर की माँ यदि बोल पाती तो ऐसे बेटों का पूजन कभी स्वीकार ना करती - हो सकता है मौन रहकर भी वह ऐसे लोगों की पूजा अर्चना का तिरस्कार ही कर रही हो | बहुत ही मर्मभेदी रचना के लिए शब्द नहीं मिल पा रहे-- बस नमन | ये रचना आपकी गहरी अंतर्दृष्टि की परिचायक है |

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    Replies
    1. आपका शब्द शब्द सत्य...
      रेनू जी सदा की तरह सृजन को इतना सूक्ष्मता से पढ़ना और भाव प्रवीण समीक्षा करना आभार !
      दिन नारी नारी की ढाल बनेगी उस दिन नारी ना फरियाद करेगी ! सम भाव नारी पा जायेगी उस दिन विहान हो जायेगी ! ...मेरा लिखा हुआ .ना जाये बस व्यर्थ ..
      जिस दिन एक भी माँ को उसका बिछड़ा बेटा मिल जायेगा ..समझो उस दिन मेरा लेखन गरिमामय हो जायेगा !

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  2. दारुण!
    दिल पर सीधा प्रहार करती रचना मीता।

    कभी मां बाप की सेवा की ही नही
    लाख पूजा रचाले तूं क्या फायदा ।

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  3. मर्मस्पर्शी सच्चाई बयां करती है यह रचना

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  4. बिलकुल सच कहा है ...
    जिस माँ ने पैदा किया, पाला पोसा बड़ा किया यदि उसका ही मान नहीं कर सके तो माँ की हर पूजा व्यर्थ है ...
    बहुत ही सटीक रचना है ,,,,

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  5. कितना बड़ा विरोधाभास है ... जिस माँ ने पैदा किया , बड़ा किया ,उसे यूँ ही छोड़ कर पत्थर की माँ का पूजन करते हैं ... बहुत मार्मिक रचना , चित्र देख कर हिल गयी

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