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बत रस

बत रस

पर निन्दा रस भाव की
बड़ी ही अदभुत बात
कहत सुनत बोलत सभी
मन अति आनंद समाय 

चाकी जैसी रसना चले
सरस भरी रस खान
बत्तीस दांतो मध्य भी
चुप ना रहे वाचाल !

रसना अति चालाक हैं
रखो इसे धर ध्यान
कह कहाय भीतर गई
जूती सर  पड़ी जाय !

रसना ऐसी षोडषी
करे बातन को शृंगार
बिन लाली काजर बिना
मुख्य मैलो करी जाय !

मुख रसना गर ना रहे
जीवन व्यर्थ समान
सारे रस रसना भरे
बत रस सरस सुजान !

डॉ इन्दिरा गुप्ता

Comments

  1. बहुत सुंदर रचना

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  2. आंचलिक शब्दों से परिपूर्ण सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. आंचलिक भाषा ऐसे काव्य में और सरसता भर देती हैं !
      आभार पम्मी जी

      Delete
  3. सखी ! आपकी बात से मन बरबस रहा मुसकाय -
    इस पर निंदा रस बिना जीवन कहाँ सुहाय ?
    मुझसे पची ना तुम पचा लेना -
    मैं बताऊँ तुम आगे ना कहना -
    सबरस पर भारी बतरस -
    इसकी महिमा का क्या कहना ?
    गूंगे गुड सा स्वाद है इसका
    सखी वर्णन कियो ना जाय !!!!!!!!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. क्या बात कही सखी री
      पर निदा रस सम्राट
      गूंगे को गुड सौ रहो
      पर याको मौन स्वभाव !
      👍👍👍👍👍👌👌👌👌🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏😂😂😁😁😀😀😀😎😎😋😋😊😊😉😉

      Delete
  4. वाह वाह सखी
    कही सटीक सी बात
    पर निन्दा रस राज हैं
    सब कू बहुत सुहाय !
    😀😀😁😁😂😂

    ReplyDelete
  5. चाकी जैसी रसना चले
    सरस भरी रस खान
    बत्तीस दांतो मध्य भी
    चुप ना रहे वाचाल !...बहुत सुन्दर सखी
    सादर

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