इन्द्रधनुषी नार ...
नव रस नव रंग सरीखी
है नव रँगी नार
सात रंग के इन्द्र धनुष सा
उसके जीवन का सार !
सदा सुखद हो रंगोत्सव
ना सदा दुखद सी बात
धीमी आँच सा सुलगें
नारी का मन संसार !
स्मित सी मुस्कान सजीली
सब रंगो को भर लेती
फीकी भद्दे रंग ढाप कर
समक्ष सरस रंग रख देती !
इंद्रधनुष के सप्त रंगो से
अधिक रंग भरी दुनियाँ है
जीवन की हर श्वास भिन्न रंग
ये ही नारी की द्विविधा हें !
हर पल रंग बदलता रहता
नारी के कर्तव्यो का
एक तरफ सुर्ख चटकीला
दूजी तरफ रहा फीका!
फूंक फूंक कर क़दम रख रही
नव रंगो को पजौख रही
द्रढ अस्मिता लेकर नारी
नव इन्द्र धनुष सँजो रही !
डा .इन्दिरा ✍
शुभ संध्या...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
सादर
शुक्रिया हौसला अफजाई का
Deleteवाह्ह..।बहुत ख़ूब👌👌
ReplyDeleteथैंक्स
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteएक एक शब्द इतना सधा हुआ
मन को भा गई आप की रचना
बहुत बहुत बधाई
शुक्रिया लेखन सार्थक हुआ
Deleteसभी का अतुल्य आभार मेरे नव प्रयास को सराहा 🙏
ReplyDeleteप्रथम तो आपको नये ब्लॉग की बधाई मीता।
ReplyDeleteइंद्रधनुषी नार बहुत शानदार रची आपने।
नारी क्या है कर्तव्यों और मनमानी के बीच फसी एक रस्सी जो निरन्तर ईधर से उधर खींची जाती है और ये खेल हमेशा बिना किसी परिणाम के समाप्त होता है या कहूं तो निरन्तर चलता रहता है।
न मन का कभी कर पाती वो नारी
न किसी का पुरा मन रख पाती वो नारी।
अति आभार मीता आपको ब्लॉग पर पाकर मन प्रफुल्लित हो गया
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ५ फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
धीमी आँच सा सुलगें
ReplyDeleteनारी का मन संसार !
स्मित सी मुस्कान सजीली
सब रंगो को भर लेती
फीकी भद्दे रंग ढाप कर
समक्ष सरस रंग रख देती !
नारी मन और वात्सल्य का बेहतरीन चित्रण। माफ करेंगी देर से रचना पढ पाया।
अति आभार ,🙏
Deleteबहुत बहुत बहुत सुंदर
ReplyDeleteअरे वाह चाचा जी आप यहाँ मन खुश हुआ आपको देख कर प्रणाम
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया सखी नीतू ब्लॉग पर मेरा होना आपकी अनुकंपा है ।
ReplyDeleteबड़ी प्यारी सतरंगी नार !!!!!सचमुच नारी जीवन के रंग हर पल बदलते रहते हैं |आज की नारी अस्मिता को संजो न्ते आकश छु रही है | बड़ी सार्थक रचना प्रिय इंदिरा जी |
ReplyDeleteअतुल्य आभार
ReplyDeleteayamlaga bangkok adu ayam taji
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