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Showing posts from February, 2019

वीर तनय अभीनन्दन

वीर तनय अभिनंदन .... सब मिल कर गुहार लगाओ केसरी नन्दन के दरबार मेंं अभिनंदन को प्रभु छुड़ाओ सकुशल लौटे घर बार मेंं ! बाल ना बांका हो उसका ना कोई उसको पीड़ा हो दुश्मन के हत्थे चढ़ा जरूर पर उसकी पूरी रक्षा हो ! वो अभी नन्दन,तू अंजनी नन्दन सुत हो सुत का रक्षण हो माँ से माँ का कौल रहा ना किंचित मात्र अवज्ञा हो ! सौगंध तुम्हे मारुति नन्दन पवन वेग प्रस्थान करो वीर तनय को ले आओ मन की शंका को शान्त करो ॥ डॉ इन्दिरा गुप्ता

तमन्ना

तमन्ना है तमन्ना रण बकुरौ का व्यर्थ ना बलिदान जाये जीवन सुरक्षित हो सदा नाहक ना कोई प्राण जाये ! सुन तमन्ना ईश मेरे हर मांग का सिन्दूर चमके भरी रहे हर गोद माँ की हाथ की चूड़ी ना चटके ! है तमन्ना आज प्रभुजी देश मेंं अमनो चमन हो दूध मुहे बच्चों के मुँह से दूध की बॊटल ना छूटे ! तूही है सर्वस्व दाता तुझसे ही मनुहार है बात इतनी मांग ले तू बार बार गुहार है ! डॉ इन्दिरा गुप्ता  !

शरद ऋतु

शरद ऋतु .... शीत काल की हुई विदाई शरद ऋतु इठलाती आई पवन बहे चंचल अति भारी फुनगी-फुनगी ,डारी-डारी ! रीते मेघ खेलते फिरते ना -ना प्रकार , रूप वो धरते भूल गई हो शीत चुनरिया ओढ़ उसे मन मानी करते ! धरा सजी पीली सरसो से रूप लावण्य भरी वो दमके दिनकर लख कर रुक जाये ऋतु राज भी बहके जाये ! धरा रुकु या गगन समाऊ या अम्बर धरती ले आऊ रति , मदन से कहे बिहँस कर स्वर्ग से बेहतर यही बस जाऊ ! शीत काल की हुई विदाई शरद ऋतु इठलाती आई ! डॉ इन्दिरा गुप्ता

धरती पुत्र

धरती पुत्र.... धरती पुत्र कहते है मुझको पर मेरी कोई धरा नही माता का अहसास तो है पर माता मेरे पास नही ॥ मेंं अति निर्धन गरीब  पुत्र हूँ नही पास है धन मेरे पुत्र अमीर जो रहे हवेली माता गिरवी वो रखते ! एक तो निर्धन उस पर रूठे है घन नही बरसते मेरे हित मेंं वक़्त बेवक्त बरस जाते है मुझ निर्बल के जीवन मेंं ! मन पीड़ा अविराम बह रही सहन नही जब कर पाता भूख पेट की,  चटख गले की जब कुछ सहा नही जाता ! आत्मघात करता हूँ तब मेंं जब पीड़ा से भर जाता हूँ नही राह दिखती है कोई तब मृत्यु की राह पकड़ता हूँ ! क्षमा , क्षमा हे मात क्षमा कर भाग्य हीन है पुत्र तेरा धरती पुत्र कहाता हूँ मेँ पर रहा अभागा सुत तेरा ॥ डॉ इन्दिरा गुप्ता  

करार

करार .... दिल कुछ बेकरार लगता हैं करारे दिल का तलब गार लगता हैं ! टूटें ही नही आज तलक , रोए भी बहुत हैं मेरा इश्क ही मुझे , गुनहगार लगता हैं ! तेरी इक तलाश मेँ , खुदी को खो दिया , खुदी की तलाश मेंं दिल बेकरार लगता हैं ! आसार नही दिख रहे आँखो मेंं बादलो के , बारिश हैं गिरिफ़्तार, बादलो से लगता हैं ! किसको दिखाये यारो करार हैं या बेकरारी दिल दोनो का ही गुनहगार लगता हैं ! डॉ इन्दिरा गुप्ता

समाज / नारी

समाज / नारी पंख बांध कर तोलते तुम मेरे अरमान दम हैं तो खोलो ये बन्धन भरने दो परवान ! भरने दो परवान स्वयं को सभ्य बनाओ नारी हूँ सृजन शील हूँ ना मुझको चंडिका बनाओ ! पंख नोचते घायल करते टुकुर टुकुर सब देखा करते बीच सभा तिरस्कृत करते नारी पूज्य हैं ढोंग रचाते ! द्वापर , त्रेता , हो या कलयुग यही रहे जज्बात नारी तू केवल भोग्या हैं यही तेरी औकात ! सतयुग मेंं भी तो लोगो ने मर्यादा दी थी त्याग एक पुरुष के कहने भर से नारी को दिया बनवास ! विदुषी अहिल्या ने पाया पुरुष व्यभिचार का शाप निरपराध सहा उसने पाथर होने का भार ! देवी हैं तू त्याग की प्रतिमा कह नारी को बहकाते उसके ममत्व के भावो का पर मोल नही समझ पाते ! अब ...... बिना पंख परवाज़ के खड़ी हो गई नार जो  भी आये रोकने कब उससे रुक पाय ! खण्ड खण्ड करदे तू उन्मादी का व्यभिचार गर्व दमन कर पाखण्डी का ना  खुद को अबला मान ! शक्ति तूही , भक्ति तू ही तू ही हैं महाकाल ले नव भाव खड़ी हैं नारी नर जान सके तो जान ! डॉ इन्दिरा गुप्ता 

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार .... भ्रष्टाचार , भ्रष्ट आचरण हम ही भय्या फैलाते दूजा कोई और करे तो जम कर उसको गरियाते ! नेता हो गये भ्रष्ट कहे देश की नय्या डूबी , क्यो बनाया भ्रष्ट को नेता वोट देते वक़्त ना सूझी ! अब क्यो चिल्ल पों मचा रहे हो नाहक हाय हाय चिल्लाते , वोट के खातिर नोट लिऐ थे वो काहे नही बताते ! भ्रष्ट तो हम हैं भ्रष्ट आचरण हम ही करते जाते , पुलिसिया को नोट थमा कर बिन लाइसेंस कार चलाते ! मन्त्री जी से मिलना हो या टेंडर पास कराना हो , चपरासी की जेब गर्म कर अपना काम चलाना हो ! दूजौं के दोषारोपण से भ्रष्टाचार नही मिटता , पहले गिरेबां साफ करो तब आएगी मन मेंं दृढ़ता ! भ्रष्ट कोई और नही हैं हर समाज का हर जान हैं , काम निकल जाये बस अपना देखो कितना ओछापन हैं ! सुनलो भय्या कान लगाय के मेरी कड़वी बात , भ्रष्टाचार हमी फैलाते भ्रष्ट हो गये हम सब आप ॥ डॉ इन्दिरा गुप्ता

ललकार

ललकार ... दिन चढ़ता हैं नई भोर हैं तीव्र चपल कुछ नया शोर हैं उषा की लाली तप्त हैं पवन चल रहा जरा सख्त हैं ! चारो ओर फैली हैं कटुता व्याप्त हो रही कठिन अवस्था दिग्गज दिग दिग डोल रहे हैं कुकर्म सब बोल रहे हैं ! शीतल मलय भय सा फैलाती सनी रक्त से धरा अकुलाती ज्वलंत से अब भाव बह रहे तीव्र प्रज्वलित ज्वाल हो रहे ! नर संहार अब बहुत हो गया खर खप्पर तैय्यार हो रहे धधक रही हैं आज भवानी विध्वंश होय अब मन मेंं ठानी ! ना शन्ति अब ना समझौता नये भाव हो नई व्यवस्था सहन शक्ति को माने कायरता अरि व्यवहार करे पशु जैसा ! बहुत हो गई अब मन मानी मौका चूके कब वो ज्ञानी समय पड़े परखिये भाई मूरख , खल और दुश्कामी ! लो   ..... आव्हान करती लेखनी सुनो मेरी ललकार चीख चीख कर जगा रही क्या सोया हैं नर  जाग ! क्या सोया हैं नर जाग ! डॉ इन्दिरा गुप्ता

पलाश

पलाश .... लो पलाश सा लाल हो गया माँ का जाया पूत शत विक्षत होकर घर लौटा माँ का पलाश सा पुत! सुरभित पवन कर गया वो पलाश का फूल टूटा बिखरा लाल कर गया इस धरती  की धूल ! नये नवोडा के माथे का लाल लाल सिन्दूर कोई बिन ब्याहे चढ़ा गये माँ के चरणो मेंं सिन्दूर ! डॉ इन्दिरा गुप्ता

अब अपनी बारी

अब अपनी बारी ... नमन तुम्हे ओ वीर सपूतों चरण नमन उस जननी को जन्मा पुत्र सिह जियाला धन्य कर गया धरती को ! माँ , बहन , बेटी और पत्नी देश हिताय सब तज डाला दूध मुंहे का मुख ना देखा सब तज कर पी मृत्यु हाला ! रिश्ते कई शहीद कर गया हृदय भरा हैं अश्को से बाहर नही निकल पाते वो कसमसा रहे सूखे लब पे ! उन्ही अश्को की तुम्हे कसम हैं व्यर्थ ना उनको जाने देना बूँद बूँद अपने बहते हैं दुश्मन के लाखों बहा देना ! भोर और क्या साँझ सभी अरि की धुँधली कर डालो छाती फाड़ कर रक्त बहा दो पापी की रूह कंपा डालो ! अब कदम उठाने से पहले बार बार फिर कर सोचे सोता सिह उठाने से उड़ते हैं हाथो से तोते ! कसम तुम्हे हैं उस दुग्ध की जो रग रग मेंं प्लावित हैं उष्ण ज्वाल सा उसे तपा दो जल जाये छूने भर से ! बातें -बातें सिर्फ ना बातें कुछ करो कुछ कर जाओ वो तो कर के  चले गये अब अपनी बारी आओ ! डॉ इन्दिरा गुप्ता स्व रचित

अपील / आव्हान

अपील / आव्हान शब्द मौन लेखनी गुमसुम मसि असहाय ना लिख पाये कैसा कहर टूटा हैं सब पर कवि हृदय दरक कर रह जाये ! नही प्रश्न केवल मरने का ना रहा कोई सवाल निरुत्तर से खड़े रह गये विस्मृत हम सब आप ! क्या यही नियति हैं सैनिक की व्यर्थ लहू बहाये दुश्मन आये मारे काटे हम चुप्पी साधे रह जाये ! आभास नही तनिक मात्र भी नित नित सैनिक मरते देश के खातिर तो निश्चय ही हमारे लिऐ भी जीते ! शत विक्षत बेटे के शव से माँ की छाती विदीर्ण हुई जीता जागता लाल दिया था पोटली मेंं भर लाश मिली ! अट्टहास कर रहा हैं दुश्मन सीना ताने हँसता हैं धूर्त कपटी छल से लड़ता नाहक जीवन हरता हैं ! हम ये करते हैं , वो कर देगे छोड़ो गाल बजाई को बहुत हो गया बातें करना छोड़ो नक्कारे की तूती को ! बाजू फड्के छाती धड़के सोये जियाले जाग जरा दस दस पर एक हो भारी ऐसा कुछ तू दाव लगा ! सियासत दारो अब तो छोड़ो तू -तू ,मेंं -मेंं का राग दुश्मन घर मेंं घुस आया गर जाग सके तो जाग ! पर पीड़ा समझ नही आती बेटा कैसे कुर्बा होता मन्त्री जी का सुत होता तो पीड़ा का तुरत भान होता ! जनता से अपील कर रही करती आव्हान आज

ये इश्क इश्क

ये इश्क इश्क ..... इश्क दिवानी राधिका या मीरा दबंग चढ़ चौबारे बोलता जब बजे इश्क की चंग -चंग ये इश्क-इश्क , ये इश्क- इश्क .... जब बजे इश्क की चंग फिरे दीवाना मारा इकला मगन फिरे खुद मेंं दिखता केवल यारा- यारा ये इश्क - इश्क , ये इश्क - इश्क ..... इश्क रहे मलंग सा सूफी पीर समान हिय इकतारे मेंं बजे सिर्फ इश्क का नाम -नाम ये इश्क - इश्क , ये इश्क -इश्क ... इश्क खुदी अरदास हैं या कहो पाक अज़ान इश्क बिना कब मिल सका खुदा , अल्लाह , भगवान -नाम ये इश्क - इश्क,  ये इश्क -इश्क ... डॉ इन्दिरा गुप्ता स्व रचित

मधुशाला

मधुशाला ... मधुशाला जो मधु छलकाये सूखे हिय रस धार बहे सूने मन पायल सी छनके छलक छलक मधु जाम बहे ! या विरहन का प्रेम पियासा अश्क भरा मय का प्याला पीकर मन मतवाला होता भूले  विरह  तप्त ज्वाला ! या गजगामिनी चले भामिनी मद मतंग सी मतवाली चषक भरा रति भाव सरीखा पीता जाता पीने वाला ! कभी लगे ज्ञान गंगा सी शान्त भाव लिऐ हाला सुख दुख सब विस्मृत कर देती काबा काशी सी मधुशाला ! डॉ इन्दिरा गुप्ता स्व रचित

तसव्वुर

तसव्वुर ... तसव्वुर हो तभी नजरे इनायत होगी जरूरी तो नही सर झुकाया और कर ली दीदारे सनम ये भी सही ! तसव्वुर उनका याद कर आँख कुछ पुरनम हुई उनके खयालो मेंं हम हैं या हमारे अलावा कोई नही ॥ तसव्वुरे चाहते शौक हैं ऐसा हर एक शस्क साथ कोई और हैं तसव्वुर मेंं कोई हैं नही !  ! मजार पर आये थे उनकी खाक लेने वास्ते वो नही तो उनकी यारो खाके तसव्वुर ही सही ! डॉ इन्दिरा गुप्ता

मुक्तक

मुक्तक .... 🌾 हीरे से कट सकता हैं यारब पत्थरो का भी जिगर ये बिन तराशे लोग आखिर कब तलक बच पाऐगे ! 🌾 जिक्र उनका हो अल्फाज़ संवर जाते हैं हम खार ही लिखते हैं वो फूलो से महक जाते हैं ! 🌾 जिन्दगी से बेहतर कोई किताब नही कमाल  ... एक भी पन्ना नही लिखी कोई बात नही ! 🌾 फुर्सत सब फुर्र हुई सुकुने असर कहाँ मुगालते मेंं जी रहे केवल लोग यहाँ ! 🌾 बीते दिनो की बात रही रोना रुलाना इश्क अब पुरजोर हैं जाने ना झुक जाना ! 🌾 पलक झपकते बदलते जो फितरत की चाल ना कर पाये वो कभी इश्क विश्क जनाब ! 🌾 फितरत ही तो हैं साहिब जो जमाने को बदलती हैं हवा का रुख देख कर नीयत चाल चलती हैं ! डॉ इन्दिरा गुप्ता स्व रचित

विजय

विजय ...... विजय चहिए तो उठ दौड़ो झाड़ पुरानी राख राग भैरवी बुला रही दे ताल पर ताल ! अरि मुण्डो को काट बिछा दो दूर करो माँ का अवसाद ! विजय अमूल्य मुक्ता मणि जैसा इसे नही भाता प्रमाद ! तीव्र धार यलगार करो अरि मर्दन कर माँ की प्यास बुझा ! विजय श्री रक्त तिलक की सज्जित होगी भाल लोह शृंखला होये खण्डित त्रसित मात पाये जब त्राण ! डॉ इन्दिरा गुप्ता