विजय ......
विजय चहिए
तो उठ दौड़ो
झाड़ पुरानी राख
राग भैरवी
बुला रही
दे ताल पर ताल !
अरि मुण्डो को
काट बिछा दो
दूर करो
माँ का अवसाद !
विजय
अमूल्य
मुक्ता मणि जैसा
इसे नही
भाता प्रमाद !
तीव्र धार
यलगार करो
अरि मर्दन कर
माँ की
प्यास बुझा !
विजय श्री
रक्त तिलक की
सज्जित होगी भाल
लोह शृंखला
होये खण्डित
त्रसित मात
पाये जब त्राण !
डॉ इन्दिरा गुप्ता
विजय की अगर है ,आस तो
ReplyDeleteयलगार तो करनी ही होगी
झाड़ पुरानी राख ,
क्रांतिकारी लेखनी बहुत खूब
बेहतरीन रचना
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