मुक्तक ....
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हीरे से कट सकता हैं यारब पत्थरो का भी जिगर
ये बिन तराशे लोग आखिर कब तलक बच पाऐगे !
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जिक्र उनका हो अल्फाज़ संवर जाते हैं
हम खार ही लिखते हैं वो फूलो से महक जाते हैं !
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जिन्दगी से बेहतर कोई किताब नही
कमाल ...
एक भी पन्ना नही लिखी कोई बात नही !
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फुर्सत सब फुर्र हुई सुकुने असर कहाँ
मुगालते मेंं जी रहे केवल लोग यहाँ !
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बीते दिनो की बात रही रोना रुलाना
इश्क अब पुरजोर हैं जाने ना झुक जाना !
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पलक झपकते बदलते जो फितरत की चाल
ना कर पाये वो कभी इश्क विश्क जनाब !
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फितरत ही तो हैं साहिब जो जमाने को बदलती हैं
हवा का रुख देख कर नीयत चाल चलती हैं !
डॉ इन्दिरा गुप्ता
स्व रचित
बहुत खूब ,
ReplyDeleteफितरत ही तो है साहिब जो जमाने को बदलती है ,हवा का रुख देखकर नियत चाल चलती है .....