मधुशाला ...
मधुशाला जो मधु छलकाये
सूखे हिय रस धार बहे
सूने मन पायल सी छनके
छलक छलक मधु जाम बहे !
या विरहन का प्रेम पियासा
अश्क भरा मय का प्याला
पीकर मन मतवाला होता
भूले विरह तप्त ज्वाला !
या गजगामिनी चले भामिनी
मद मतंग सी मतवाली
चषक भरा रति भाव सरीखा
पीता जाता पीने वाला !
कभी लगे ज्ञान गंगा सी
शान्त भाव लिऐ हाला
सुख दुख सब विस्मृत कर देती
काबा काशी सी मधुशाला !
डॉ इन्दिरा गुप्ता
स्व रचित
बेहतरीन
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर मीता।
ReplyDeleteशुक्रिया ...🙏
Deleteप्रणाम दी आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया
Delete