अपील / आव्हान
शब्द मौन लेखनी गुमसुम
मसि असहाय ना लिख पाये
कैसा कहर टूटा हैं सब पर
कवि हृदय दरक कर रह जाये !
नही प्रश्न केवल मरने का
ना रहा कोई सवाल
निरुत्तर से खड़े रह गये
विस्मृत हम सब आप !
क्या यही नियति हैं सैनिक की
व्यर्थ लहू बहाये
दुश्मन आये मारे काटे
हम चुप्पी साधे रह जाये !
आभास नही तनिक मात्र भी
नित नित सैनिक मरते
देश के खातिर तो निश्चय ही
हमारे लिऐ भी जीते !
शत विक्षत बेटे के शव से
माँ की छाती विदीर्ण हुई
जीता जागता लाल दिया था
पोटली मेंं भर लाश मिली !
अट्टहास कर रहा हैं दुश्मन
सीना ताने हँसता हैं
धूर्त कपटी छल से लड़ता
नाहक जीवन हरता हैं !
हम ये करते हैं , वो कर देगे
छोड़ो गाल बजाई को
बहुत हो गया बातें करना
छोड़ो नक्कारे की तूती को !
बाजू फड्के छाती धड़के
सोये जियाले जाग जरा
दस दस पर एक हो भारी
ऐसा कुछ तू दाव लगा !
सियासत दारो अब तो छोड़ो
तू -तू ,मेंं -मेंं का राग
दुश्मन घर मेंं घुस आया
गर जाग सके तो जाग !
पर पीड़ा समझ नही आती
बेटा कैसे कुर्बा होता
मन्त्री जी का सुत होता तो
पीड़ा का तुरत भान होता !
जनता से अपील कर रही
करती आव्हान आज
मेरी लेखनी जगा रही हैं
नर जाग सके तो जाग !
अश्रु नही अब रक्त चाहिए
बैरी का सर मुझे चाहिए
माँ भारती हुँकार रही हैं
अरि का मस्तक काट लाइये
मेरी अतृप्त प्यास को केवल
अरि रक्त की प्यास !
मेरी लेखनी जगा रही
नर जाग सके तो जाग !
डॉ इन्दिरा गुप्ता
(14 फरवरी 2019 को सैनिको के शहीद होने पर
श्रध्दा सुमन अर्पण 🇮🇳💐🙏)
शत-शत नमन
ReplyDeleteआभार 🇮🇳🙏
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