वीरांगना किरण बाला ✊
जहाँ राजपूत पुरुष अपनी वीरता के लिये प्रसिद्द है वही राजपूती महिलाये भी अपनी आन , बान , और सतीत्व की रक्षा के लिये प्रसिद्द है ! उनके अदम्य साहस को प्रमाणित करने के लिये कई कथा कहानी और प्रसँग प्रचलित है !
1
ये बात उस काल की है
जब भारत में मुगलो का शासन था
अकबर था दिल्ली का बादशाह
अपनी मन मर्जी करता था !
2
यू तो बड़ा गुणी था अकबर
नव रत्न रखे दरबारी
गायन , वादन , नर्तन के जानकार
गुणी जन सारे अधिकारी !
3
पर सर्व गुणी नहीँ था अकबर
एक अवगुण था भारी
सुँदर नारी से हरम सजाना
उसे शौक था भारी !
4
इसीलिये प्रति वर्ष दिल्ली मै
नौ रोज का मेला लगता था
सुंदरियों की खोज बीन का
जहाँ जाल बुनता था !
5
राणा प्रताप के अनुज भाई की
सुता किरण अति रूपमती थी
पिता शक्ति सिँह की पुत्री
रजपूती क्षत्राणी थी !
6
सखियों के संग किरण भी
मेला देखने आई थी
रूप लावण्य भरी कन्या थी
चेहरे पर रुनाई थी !
7
उस बार नौ रोज मेले मै
अकबर भी आया था
बुर्का पहने घूम घूम कर
सुन्दरियाँ देख रहा था !
8
नजर पड़ी किरण बाला पर
अकबर की आँखे चमकी
देख शिकार नजरो के आगे
बीभत्स मुस्कान है प्रगटी !
9
पता लगाओ कौन है वो
कौन कुल की कन्या है
कौन पति कहाँ रहती हें
क्या सब अता पता है !
10
किरण बाला बीकानेर के
राजवंश ब्याही थी
प्रथ्वी राज पति थे उसके
जो अकबर के सैनिक थे !
11
पता चला सेना का सैनिक
वीर प्रथ्वी राज पति था
चली चाल उस पतित ने
प्रथ्वी को दूर लड़ने भेजा था !
12
इधर किरण को दासों द्वारा
महल बुलावा भेजा
अच्छा स्वागत किया महल में
वो तो होना ही था !
13
स्वयं अकबर आगे बढ़ कर
स्वागत सत्कार करता था
किरण रूप पर मोहित राजा
ठंडी आहे भरता था !
14
बोला रानी हम तुमको
बेगम करते है स्वीकर
छोड़ो उस प्रथ्वी राज को
आज से हम तुम्हारे भरतार !
15
कह नराधम बढ़ता जाता था
किरण पीछे हटती जाती
बात समझ नहीँ पाई थी
क्या हो रही ये अनहोनी !
16
व्यथा और दुख के कारण
अश्क छलक आये थे
निःसहाय सी धरा देखती
मन कुछ सोच नहीँ पाये थे !
17
तभी नजर पड़ी कालीन पर
झट से युक्ति लगाई
पकड़ के कोना झटका जोर से
अकबर धरा पर पड़ा दिखाई !
18
उलझ गया गिरा औंधे मुँह
व्यभिचारी आतताई
हाय अल्लाह निकला मुँह से
तभी संभली शेरनी जाई !
19
अंगिया से कटार निकाली
छाती पर चढ़ दौड़ी
कटार धार रखी गर्दन पर
फिर गरज उठी क्षत्राणी !
20
रक्त वर्णी आँख हो गई
श्वास धौकनी चलती थी
छाती पर चढ़ी कालिका
रणचण्डी सी लगती थी !
21
एकाँत महल में बुला जिसे
नापाक था करना चाहा
वही रूप धरे काली का
काल का ग्रास बना रही बाला !
22
हुँकार उठी घायल सिंहनी
बोली तभी गरज कर
क्या चाहता है अब बोलो
बनना मेरा भरतार हें मर कर !
23
किरण अग्नि सी धधक गई
जब अकबर ने हाथ लगाया
धरती पर पछाड़ गिरा कर
छाती पर था पाँव जमाया !
24
छाती पर धर कर पाँव
गरज उठी क्षत्राणी
मै उस प्रताप की वंशज हूँ
जिसके डर से तू माँगे ना पानी !
25
भयभीत हुआ तब अकबर
बोला हाथ जोड़ कर
गलती हो गई माफी देदो
भूल हुई भयंकर !
26
माफ करो मुझको देवी
कह अकबर गिड़गिड़ाया
अब ना करूँगा कह कर
किरण के सन्मुख शीश झुकाया !
27
एक बात कान खोल कर सुन लो
ये नौ रोज का मेला बन्द
पर नारी को सम्मान नजर से
अब से देखोगे तुम नराधम !
28
हाथ जोड़ कर बोला अकबर
अब मेला नहीँ लगेगा
वैसा ही प्रावधान रहेगा
जैसा आप कहोगी बहना !
29
जाओ अपने घर जाओ
कह स - सादर भिजवाया
कभी भूल कर भी राजा ने
फिर किरण को नहीँ सताया !
30
रजपूती नारी की शान यहीं हें
स्व आन के खातिर जीती
आन के खातिर मर जाती है
पर अन्याय नहीँ वो सहती !
31
ऐसे व्यक्ति को महिमा मण्डित कर
कैसा इतिहास लिखाया
भूल गये किरण बाला को
जिसने पटक जमी पर धूल चटाया !
32
सीख दे गई हमको भारी
नाहक हम डरते हें
हिम्मत से गर भिड़ जाये तो
सन्मुख बड़े सूरमा पानी भरते है !
डा इन्दिरा ✍
बहुत बहुत बहुत सुंदर बिटिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआदरनीय इंदिरा जी -- जब भी आपकी लिखी राजपूत वीरांगनाओं की काव्यात्मक गाथाये गूगल प्लस पर पढ़ी तो सोचा आपसे पूछ लूँ कि आपका कोई ब्लॉग भी है क्या ? शायद मैंने भी ब्लॉग के लिंक की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर आज ''प्रश्न '' रचना का सिरा पकड़े आपके ब्लॉग में प्रवेश कर गयी तो मन आह्लादित हो उठा | क्षत्रिय समाज को गौरवान्वित करती ये गाथाएँ सचमुच पठनीय हैं | वीरांगनाओं की ये शौर्य गाथाएं भारत की बेटियों के लिए अनुकरणीय है | इन्हें एक मंच पर संग्रहित होना ही चाहिए | दुसरा मेरा मत है कि पाठकों को भी जो लिखना है -वह ब्लॉग की पोस्ट के ऊपर ही लिखना चाहिए अन्यथा शब्द बाहर ही रह जाते हैं और विस्मृत से हो जाते हैं | आप का योगदान सराहनीय है क्योकि ऐसे विषय इतिहास के पन्नो में ही गुम
ReplyDeleteहो बिसर गये हैं | जो समाज या राष्ट्र अपने गौरव पूर्ण इतिहास को भुला देता है उसका उत्थान संदिग्ध बन जाता है | आपकी जितनी प्रशंसा करूं कम है | बस यही कहूंगी कि उन वीरांगनाओं को भावुक नमन ,उससे साथ आपकी ओजपूर्ण लेखनी को नमन जो उनका यशोगान रचती हैं | सादर आभार और हार्दिक स्नेह के साथ ------
आदरनीय इंदिरा जी लिखना भूल गयी -- वीरांगना किरण बाला की गाथा मेरे दिवंगत पिता जी बड़े ही भावपूर्ण शब्दों में सुनाया करते थे | आज वो स्मृति मानस पर छा मन को भिगो गयी | इन वीर बालाओं को सादर नमन जिन्होंने अपनी अस्मिता को बचने के लिए किसी मसीहा का इन्तजार नहीं किया | सस्नेह --
ReplyDeleteहिम्मत से गर भिड़ जाये तो
ReplyDeleteसन्मुख बड़े सूरमा पानी भरते है !
इन साहसी महिलाओं का साहसिक अतीत रग रग में साहस का संचार कर जाता है । किरणबाला , आपकी जादुई लेखनी और विचारधारा को श्रद्धापूर्वक नमन ।