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तिल तिल

तिल तिल

तिल तिल कर
ही बिखर जात हूँ
तिल भर
कछु ना सुहाये
तिल भर भी 
कल नाहीं पडत  हें
तिल तिल ये 
समय बितो जाये !
तिल भर  भी 
यदि तुम मिल जाते
तिल भर
चैन  मै पाती
तिल भर ही
मन मेरा हरखता
तिल तिल ही
जी जाती !

डा इन्दिरा ✍

Comments

  1. बहुत सुंदर बिटिया आपने अपना खुद का ब्लॉग बना लिया

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