Skip to main content

वीर बहुटी ✊वीरांगना अवंतिका बाई लोधी

वीरांगना अवंतिका बाई लोधी .
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख सूत्रधार .!

आज भी बहुत लोग ऐसे है जो रानी अवंतिका बाई के  बारे मैं कुछ जानते ही नहीं है ! इनका योगदान सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी नेता झांसी की रानी लक्ष्मी बाई  से कम करके नहीं आंका जा सकता !
पर हमारी पिछड़े वर्ग को नकारने की मानसिकता  ने हमेशा इनके बलिदान को नजर अंदाज किया !
वीरांगना अवंतिका बाई लोधी आज भी महराष्ट्र मैं  लोक काव्यों की नायिका के रूप मैं राष्ट्र निर्माण और देश भक्ति के रूप मैं प्रेरणा देती है !
महरानी अवंतिका बाई का जन्म एक पिछड़े लोधी राजपूत समुदाय में 16 अगस्त सन 1831 मैं गाँव
मनकेहरी  जिला सिवती के झूझार  सिंह के यहाँ हुआ था ! उनकी शिक्षा गांव मैं ही हुई ! बचपन मैं ही उन्होने
घुड़सवारी और तलवार चलाना सीख लिया ! लोग उनकी दोनों कलाओं को देख आश्चर्य चकित हो जाते ! वो एक वीर और साहसी बालिका थी ! जैसे जैसे वो बड़ी हुई उनकी इन कलाओं की ख्याति दूर दूर तक फैल गई ! फलस्वरूप उनका विवाह सजातीय लोधी राजपूत रामगढ़ रियासत मण्डला के राजकुमार विक्रमादित्य के साथ हुआ ! साहसी और जुझारू कन्या रायगढ़ रियासत की कुलवधू बन गई ! कालांतर मैं उंहोंने दो पुत्रों को जन्म दिया !
सन 1850  मैं अवंतिका बाई  के ससुर का देहांत हो गया !  फलस्वरूप उनके पति विक्रमादित्य राजा बने ! पर वो अस्वस्थ रहने लगे दोनों पुत्र अमान सिंह और शेर सिंह अभी बच्चे थे ! अतः राज का भार रानी के कंधों पर आ गया  !  अवंतिका बाई ने झांसी की रानी लक्ष्मी बाई  की तरह पूरा राज्य भार संभाला और अपनी सूयोग्य्त का परिचय दिया रानी से प्रजा खुश और संतुष्ट थी !
इधर अंग्रेज लीडर लार्ड डलहौजी का शासन साम्राज्य वाद  की नीति से प्रभवित था ! उनके काल मैं राज्य विस्तार का कार्य बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा था ! डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के कारण रियासतों मैं काफी हो हल्ला मच रहा था ! डलहौजी ने एक नीति प्रसारित की "लार्ड ऑफ वर्ड्स "
जिसके अंतरगत नियम बनाया गया जिन राज्यों का स्वभाविक तौर पर कोई उतराधिकारी नहीं होगा उसे ब्रिटिश सरकार अपने अधीन कर लेगी ! राज हड़पने की इस नीति के अंतरगत डलहौजी ने ...कानपुर , नागपुर ,सतारा ,जैतपुर .सम्बलपुर .उदयपुर .करौली जैसी रियासतों को हथिया लिया था !
राजगढ़ की रजनीतिक स्तिथि का पता लगते ही "कोर्ट ऑफ वर्ड्स " के अंतरगत रामगढ को अपने आधीन कर वहां एक तहसीलदार  नियुक्त कर दिया और रामगढ़ परिवार को एक पैंशन देदी गई ! रानी अवंतिका बाई इस बात से सख्त नाराज थी पर खून का घुट पी कर रह गई और उचित अवसर की तलाश मैं रहने लगी !
सन 1857 मैं जब स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा और  क्रांति का संदेश अवंतिका बाई तक भी पहुंचा ! रानी तो पहले से ही ऐसे ही किसी अवसर के लिये तैयार बैठी थी ! उसने अपने आस पास के सभी जमींदारों एक चिट्ठी के साथ काँच की चूडियाँ भेजी ! उस चिट्ठी मैं लिखा था .....
" देश रक्षा के लिये कमर कसो या फिर चूडियाँ पहन कर घर बैठो ! तुम्हें तुम्हारे धर्म और ईमान की सौगन्ध जो इस चिट्ठी का सही पता किसी बैरी को दिया तो ! "
बस फिर क्या था सभी देश भक्त जमींदारो  रानी के  इस साहस और देशभक्ति के कायल हो गये ! और उनकी योजनानुसार अंग्रेजों की खिलाफ विद्रोह का झंडा लेकर खड़े हो गये ! जगह जगह गुप्त सभायें हनी लगी धीरे धीरे क्रांति की ज्वाला धधकने लगी ! पर सदा की तरह कुछ विश्वासघाती लोगों के कारण रानी के प्रमुख सहयोगियों को अंग्रेजों ने कैद कर मृत्यु का दण्ड दे दिया !
रानी दावानल से भभक उठी उसने "कोर्ट ऑफ़ वर्ड्स " के तहसील दार को अपने राज्य से भगा दिया ! राज्य और क्रांति की बागडोर अपने हाथों मैं ले ली ! इस तरह मध्य भारत की क्रांति कारी महिला के रूप मैं महरानी अवंतिका बाई प्रमुख नेता बन सामने आई !
रानी के विद्रोह की खबर सुन कर जबलपुर का कमिशनर  आग बबूला हो जगया उसने रानी को आदेश भेजा मण्डला के कमिशनर से आकर मिले ! इस आदेश ने रानी की क्रोधअग्नि मैं घी का काम किया ! उसने कमिशनर से मिलने के बजाय युद्ध की तैयारी शुरू करदी !
किले को मरम्मत करा कर सुड्रड बनाया ! मध्य भारत के क्रांतिकारी नेताओं को अपने नेत्रत्व मैं एक जुट किया ! इधर अंग्रेज रानी के विद्रोह से चिंतित हो उठे !
रानी ने अपनी सेना के साथ हमला बोल कर घुघरी .रामपुर .और बिछिया आदि क्षेत्रों से अंग्रेजों का सफाया कर दिया ! इसके बाद मण्डला की और कूच किया ! भारी मुठभेड़ हुई अंग्रेजों को रानी ने हार की धूल बार बार चटाई ! मण्डला का डिप्टी कमिशनर रानी से पहले ही चिढ़ता था ! और रीवा नरेश ने विश्वास घात कर  अंग्रेजों से हाथ मिला लिया !
रानी की छोटी सी सेना और अंग्रेजों की विशाल आधुनिक हथियारों से लैस फौज ..फिर भी रानी ने जम कर मुकाबला किया ! फिर स्तिथि को भाँपते हुए रानी ने   बाहर निकल देवगढ़ की पहाडियों की तरफ प्रस्थान किया ! अंग्रेज रानी का पीछा करते हुए वहाँ भी पहुंच गये ! रानी को चारों तरफ से घेर लिया और रानी को  आत्मसमर्पण का संदेश भिजवाया ! रानी ने बड़ी दृढ़ता से उस  संदेश को ठुकरा दिया बोली लड़ते लड़ते मर जाऊंगी पर गुलामी कभी मंजूर नहीं करूंगी !
घमासान युद्ध हुआ रानी की छोटी सी सेना ने अंग्रेजी सरकार की चूलें हिला कर रख  दी !
इस युद्ध मैं कई सैनिक हताहत  हुए ! रानी के बायें हाथ मैं गोली लगी और हाथ से तलवार छूट गई ! रानी ने अपने आपको चारों तरफ से घिरा देखा तो वीरांगना रानी दुर्गावती का अनुसरण करते हुए अपने अंगरक्षक के हाथ से तलवार छीन कर  खुद ही अपनी छाती मैं भौंक ली और देश के खातिर हंसते हंसते शहीद हो गई ! अंग्रेज हतप्रत रह गये और उसकी वीरता के आगे उनकी कूटनीति  की एक ना चली !
इस तरह स्वतंत्रता संग्राम यज्ञ  की अग्नि मैं महरानी अवंतिका बाई ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश के इतिहास मैं शहीदों मैं अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों  मैं लिखकर रानी  अमर हो गई ! नमन 🙏
1
16 अग्स्थ   सन 1831
था वो स्वर्णिम दिन भारी
दिव्य आत्मा उतरी धरा पर
बन के अवतारी नारी !
2
लोधी राजपूत वंश
जो पिछड़ा वर्ग कहाता था
गाँव मनेकहरी जिला सोबती
मैं एक कन्या का जन्म हुआ !
3
पिता जुझारू सिंह वीर थे
स्व जागीर मैं रहते थे
प्रारम्भिक शिक्षा दी पुत्री को
घुड़सवारी तलवार सिखाते थे !
4
बचपन से ही अवंतिका को
शस्त्र चलाना लगे भला
दूर दूर तक ख्याति फैली
बाला है कोई या युद्ध कला
5
जो देखता उसके करतब
आश्चर्य चकित सा हो जाता
तलवार चलना घुडसवारी करना
अवंतिका को  शौक बड़ा !
6
थोड़ी बड़ी हुई अवंतिका
विक्रमादित्य से विवाह हुआ
वीर जुझारू वयस्क बालिका
मण्डला का कुल शृंगार बना !
7
वीर विक्रम पति बने
दो पुत्रों की वो मात बनी
रामगढ रियासत की कुल बधु बन
खुश खुश जीवन जीती  थी !
8
पिता के मरने उपरांत राजा
विक्रमादित्य रामगढ राज करें
पर विडम्बना भारी आई
अचानक तीव्र बीमार हुए !
9
बच्चे अभी बहुत छोटे थे
राज काज क्या कर पाते
अभी नन्हे दूध मुहे थे
जागीर कैसे सँभाल पाते !
10
रानी अवंतिका डरी नहीं
खुद आप जागीर संभाली
रानी लक्ष्मी बाई की तरह
वो धीर वीर स्वाभिमानी !
11
अति सुघड़ता राज्य चलाती
प्रजा बहुत हर्षाती थी
धन धन हो अवंतिका रानी
प्रजा पुत्र समान मानती थी !
12
पर डलहौजी बड़ा काइयां
ऐसा नियम निकाला
महिला शासिका नहीं होगी
यदि पुत्र नहीं संभालने वाला !
13
उतराधिकारी नहीं होगा
तो वो राज्य अंगेजों का
गोद लिया पुत्र राजा नहीं होगा
वहाँ अधिकारी होगा अंग्रेजों का !
14
उनकी राज हड़पने की नीति का
हर ओर था हल्ला मचा हुआ
मनमानी कर रहे थे जालिम
देश हड़पने का नशा चढ़ा !
15
डलहौजी ने झांसी हड़पी
सतारा .जैतपुर .सम्बलपुर
उदयपुर .करौली  हथियाई
और ले लिया नागपुर कानपुर !

डा इन्दिरा  ✍
क्रमशः




Comments

  1. भारत का इतिहास वीरांगनाओं से भरा पड़ा है।
    एक नया अध्याय आप की प्रस्तुति लाजवाब है।
    बहुत ही सार्थक रचना।

    ReplyDelete
  2. नमन
    रायपुर में इनकी प्रतिमा लगी है
    चौक का नाम अवन्तिबाई लोधी चौक है
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार जनकारी के लिये

      Delete
  3. बहुत बढिया शिक्षाप्रद जानकारी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. भूल गये है हम जिनको
      उनकी याद दिलानी है
      खूब लड़ी हर एक बाला
      मर्दानी हर एक नारी है !
      नमन 🙏

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वीरांगना सूजा कँवर राजपुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई

वीर बहुटी वीरांगना सूजा कँवर राज पुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई ..✊ सन 1857 ----1902  काल जीवन पथ था सूजा कँवर  राज पुरोहित का ! मारवाड़ की ऐसी वीरांगना जिसने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम मैं मर्दाने भेष में हाथ मैं तलवार और बन्दूक लिये लाड्नू (राजस्थान ) में अंग्रेजों से लोहा लिया और वहाँ से मार भगाया ! 1857 से शुरू होकर 1947 तक चला आजादी का सतत आंदोलन ! तब पूर्ण हुआ जब 15 अगस्त 1947 को देश परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त हुआ ! इस लम्बे आंदोलन में राजस्थान के योगदान पर इतिहास के पन्नों मैं कोई विशेष  चर्चा नहीं है ! आजादी के इतने  वर्ष बीत जाने के बाद भी राजस्थानी  वीरांगनाओं का  नाम और योगदान कहीं  रेखांकित नहीं किया गया है ! 1857 की क्रांतिकी एक महान हस्ती रानी लक्ष्मी बाई को पूरा विश्व जानता है ! पर सम कालीन एक साधारण से परिवार की महिला ने वही शौर्य दिखलाया और उसे कोई नहीं जानता ! लाड्नू  में वो मारवाड़ की लक्ष्मी बाई के नाम से जानी और पहचानी जाती है ! सूजा कँवर का जन्म 1837 के आस पास तत्कालीन मारवाड़ राज्य के लाडनू ठिकाने नागौर जिले ( वर्तमान मैं लाडनू शहर )में एक उच्च आद

वीरांगना रानी द्रौपदी

वीरांगना रानी द्रौपदी धार क्षेत्र क्राँति की सूत्रधार .! रानी द्रौपदी निसंदेह ही एक प्रसिद्ध वीरांगना हुई है जिनके बारे मैं लोगों को बहुत कम जानकारी है ! छोटी से रियासत की रानी द्रौपदी बाई ने अपने कामों ये सिद्द कर दिया की भारतीय ललनाओ मैं भी रणचण्डी और दुर्गा का रक्त प्रवाहित है ! धार मध्य भारत का एक छोटा सा राज्य जहां के  निसंतान  राजा ने  देहांत के एकदिन पहले ही अवयस्क छोटे  भाई को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया 22 मैं 1857 को राजा का देहांत हो गया ! रानी द्रौपदी ने राज भार सँभला ! रानी द्रौपदी के मन मैं क्राँति की ज्वाला धधक रही थी रानी के राज संभालते ही क्राँति की लहर द्रुत गति से बह निकली ! रानी ने रामचंद्र बाबू को अपना दीवान नियुक्त किया वो जीवन भर रानी के समर्थक रहे ! सन 1857 मैं रानी ने ब्रितानिया का विरोध कर रहे क्रांतिकारीयों  को पूर्ण सहयोग दिया सेना मैं वेतन पर अरब और अफगानी सैनिक नियुक्त किये जो अंग्रेजों को पसंद नहीं आया ! अंग्रेज रानी द्रौपदी की वीरता और साहस को जानते थे सम उनका खुल कर विरोध नहीं करते थे ! और रानी कभी अंग्रेजो से भयभीत नहीं हुई उनके खिलाफ क्रँतिक

वीर बहुटी जालौर की वीरांगना हीरा दे

वीर बहुटी जालौर की वीरांगना हीरा दे सम्वत 1363(सन 1311) मंगल वार  वैशाख सुदी 5 को दहिया हीरा दे का पति जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के पारितोषिक  स्वरूप मिले धन की गठरी को लेकर बेहद खुश घर को लौट रहा था ! उसे जीवन मैं इतना सारा धन पहली बार मिला था ! सोच रहा था इतना धन देख उसकी पत्नी हीरा दे कितनी खुश होगी ! युद्ध की समाप्ति के बाद इस धन से उसके लिये गहने और महल बनवाउगा और दोनों आराम से जीवन व्यतीत करेंगे ! अल्लाउद्दीन के दरबार मैं उसकी बहुत बड़ी हैसियत  समझी  जायेगी ! वो उनका खास सूबेदार कहलायेगा ! ऐसी बातैं सोचता हुआ घर पहुंचा ! कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए धन की गठरी पत्नी हीरा दे के हाथों मैं देने हेतु आगे बढ़ा .... पति के हाथों मैं इतना धन .चेहरे की कुटिल मुस्कान .और खिलजी की युद्ध से निराश हो कर जाती सेना का वापस जालौर की तरफ लौटने की खबर ...हीरा दे को धन कहाँ से और कैसे आया इसका का राज  समझते देर नहीं लगी ! आखिर वो भी एक क्षत्राणी थी ! वो समझ गई उसके पति दहिया ने जालौर किले के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फौज को बता कर अपने जालौर देश और पालक राजा