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भ्रामक सा मन

भ्रामक सा मन ☘

भ्रामक सा जीवन हुआ
भ्रामक से अल्फाज
भ्रामक सा उदघोष है
मेरा देश महान !
पशु और इंसान की
हुई एकसी जात
कचरे से बीन खा रहे
दोनों एकही साथ !
मूक समझौता हो गया
भूख मैं चुपचाप
जीना है तो लेना होगा
आधा आधा नाप !
अध पेट अध नंगा जीवन
होता  है निष्पाप
मिल बांट कर खा रहे
ना झगड़ा ना संताप !
द्रवित हृदय की
आज कलम से
पिघल गये जज्बात
पापी पेट के खातिर
इंसां नर से पशु हुई जाय
फिर भी .....नारा बड़े जोर का
मेरा देश महान ! ! 🙏

डा इन्दिरा  .✍

Comments

  1. मार्मिक कविता
    सादर

    ReplyDelete
  2. अंतर तक चोट करती रचना शब्द शब्द सच्चाई की उद्घोषणा कर रहे हैं।

    यद्यपि दीन दुखी गारत है
    पर भारत के सम भारत है ।

    नारा लगाते जाइये!!

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब लिखा ... दिल दुखी होता है ऐसे हालात देख कर और शर्म आती है की आजादी के इतने साल बाद भी ये तस्वीर नही बदली ...बहुत ही विचारणीय रचना

    ReplyDelete
  4. सही कहा ...
    हम कौन थे क्या हो गये
    और क्या होंगे अभी

    ReplyDelete
  5. आभार सखी सही कहा ..
    हम कौन थे क्या हो गये
    और क्या होंगे अभी

    ReplyDelete
  6. बेहद मारक कविता और मारक हालात... हम जंहा खड़े हैं हमें कम से कम वंहा तो नहीं होना चाहिए था।
    शर्म आती है इस महान देश के नागरिक होने में...... सीधे दिल पर प्रहार करने वाली कविता।
    सादर

    ReplyDelete
  7. बेहद कटु पर सत्य की तस्वीर खींचती उत्क्रष्ट रचना
    बिलकुल सही कहा आपने
    आज मनु पशु सब एक समाना
    छीन कर भाता दोनों को खाना
    कोई रहे महलों में और
    खाए छप्पन एक साथ
    कोई पसर जाए सड़कों पर और
    खाए पशुओं की बस लात
    ना जाने अब कौन महाना
    जब पशुओं ने भी जज़्बात को जाना

    ReplyDelete

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