यामिनी 🌌🌌🌌
चमक रहा है द्विग्णित होकर
रजनी का अनुपम शृंगार
नव षोडशी पिय द्वारे आई
करके जैसे सोलह शृंगार !
निशा कालिमा हार गई
जब चाँद सितारे चमके रात
जुगनू आये बधाई देने
पिया मिलन व्याकुल भई रात !
अम्बर से ओस रत्नाकर
झर झर बिखरे सारी रात
मुक्ता मणि से चमक चमक कर
अगवानी सी करते बारात !
अवनि से अम्बर तक देखो
उत्सव छाया सारी रात
चली यामिनी गुपचुप गुपचुप
किर किर जूगनू करें गुंजार !
चटख रूपहरी चूनर ओढ़ी
चाँद चँदनिया लजा गई
नैनन मैं इंतजार था भारी
मिलन की आस जगाया गई !
डा इंदिरा ✍
सही पकड़े हो bro शुक्रिया
ReplyDeleteवाह मीता क्या निर्झर चांदनी सी झरती उज्ज्वल रचना आंखो और मन को तृप्त करती।
ReplyDeleteभाव भी सुंदर और अद्भुत।
चांद रात भर झरता रहा
किरणों की अंगुलियों से
अवनी को छूता रहा
डाल दी चादर धरा पे उजली
और दूर बैठा रूप तकता रहा।
क्या बात मीता आप तो प्रकृति की चितेरी हो काव्य पढ़ कर आपका रस मैं बह जाना बनता है !
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियों से मेरे काव्य का अभिषेक किया ...आभार
अम्बर से ओस रत्नाकर
ReplyDeleteझर झर बिखरे सारी रात
मुक्ता मणि से चमक चमक कर
अगवानी सी करते बारात !
अवनि से अम्बर तक देखो --
उत्सव छाया सारी रात
वाह !!!!!!!!!!!
--प्रिय इंदिरा जी -- रात को मानवी रूप में सजाती रचना में शब्द जगमग करते मन मोह रहे हैं -- सुंदर सृजन !!!! सस्नेह --
शुक्रिया रेनू जी आपकी प्रतिक्रिया मांनो लेखन को आशीष ..शुक्रिया
Deleteबहुत अच्छा लिखा सखी
ReplyDeleteआप की भाषा शैली लाजवाब है
उसे गजब की खूबसूरती देता है
दिल को छू लेती है आप की अभिव्यक्ती
अति आभार कहूँ या शुक्रिया कहूँ सब छोटे अल्फाज लगे सखी तेरी प्रिय प्रतिक्रिया मैं सुन्दर तेरे मन भाव रहे !
Delete🙏
बहुत अच्छा लिखा सखी
ReplyDeleteआप की भाषा शैली लाजवाब है
उसे गजब की खूबसूरती देता है
दिल को छू लेती है आप की अभिव्यक्ती