कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ( स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम नायिका )
रानी चेन्नम्मा का जन्म कर्नाटक के तेल गाँव मैं
23 अक्टूबर 1778 मैं हुआ था ! राज परिवार मैं जन्म लेने के कारण चेन्नम्मा को घुड़सवारी , तलवारबाजी और युद्ध कला मैं अधिक रुचि थी ! और इन सब कलाओं मैं उन्होंने निपुर्णता हासिल कर ली थी ! वो हर कला को बहुत शिद्दत के साथ सीखती थी ! युवा होते होते तो वो अपने अस्त्र शस्त्र ज्ञान और युद्ध कौशल के लिये प्रसिद्द हो गई थी ! उनके इन्हीं अद्भुत गुणों की वजह से कर्नाटक के कित्तूर राज्य के देसाई परिवार के राजा मल्लराज ने उनसे विवाह किया !
विवाह के बाद कुछ वर्ष सुखद बीते की रानी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा ! कुछ वर्ष बाद ही रानी के पति और पुत्र दोनों का देहांत हो गया ! रानी विचलित नहीं हुई अति धीरज और धैर्यता का परिचय देते हुए
राजा का पद संभालने के लिये रानी ने एक पुत्र को गोद लिया और उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया !
यही उद्घघोषणा थी जिसे चेन्नम्मा को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम नायिका बनने का गौरव प्रदान किया !
उन दिनों कर्नाटक सहित पूरी भारत पर अंग्रेजों का राज था ! ब्रिटिश गवर्नर डलहौजी ने पुत्र गोद लेने की रस्म को निषेध घोषित कर दिया ! जिस राज का उतराधिकारी स्वयं का पुत्र या वंशज नहीं है वो राज अंग्रेजी राज मैं विलय कर दिया जायेगा ! यानी उस राज पर अंग्रेजों का नियंत्रण रहेगा ! दरसल ये अंग्रेजों की राज हड़पने की नई चाल थी !
इस घोषणा के अनुसार चेन्नम्मा के दत्तक पुत्र को राजा मानने से मना किया ! रानी नहीं मानी पहले बात चीत से हल निकालने की कोशिश की पर असफलता हाथ लगी ! बॉम्बे प्रेसीडेंसी गवर्नर से बात की पुनः असफलता ही मिली ! अंग्रेज कित्तूर पर कब्जा करना चाहते थे असल मैं कित्तूर के बहुमूल्य खजाने पर उनकी नजर थी ! कहते है उस समय के अनुसार खजाने की कीमत 15 लाख से भी अधिक की आंकी गई थी !
पुत्र को उत्तराधिकारी ना माने जाने से रानी बहुत क्रोधित हुई और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने का द्रढ फैसला कर लिया !
चेन्नम्मा पहली रानी थी जिसने ब्रिट्रिश ईस्ट इँडिया कम्पनी से लड़ने के लिये सेना का गठन किया !अंग्रेजों को इस बात का पता लगा सन 18 24 मैं दोनों सेनाओं का आमना सामना हुआ ! ये ऐसा संघर्ष था जिसका परिणाम सुखद होगा इसका अंदेशा ही था ! कहाँ रानी की देसी हठियारौ से सजी मुट्ठी भर सेना कहाँ अंग्रेजों की अपार आधुनिक हथियारों से भरी सेना !
बात नतीजे की नहीं आजादी से जीने और मरने की थी ! रानी ने फैसला किया वो आजाद रहेगी या लड मरेगी !
अंग्रेज भारतिय नारी का रण कौशल देख दंग रह गये ! उनके तो होश ही उड़ गये ! अंग्रेजों ने ये लड़ाई जीती पर बहुत भारी नुकसान और धूर्तता के साथ !
इस लड़ाई मैं अंग्रेजों के 20 हजार सैनिक और 400 बंदूकें काम मैं ली !
ब्रिट्रिश एजेंट और कलेक्टर जॉन थाव्केराय को रानी ने मौत के घाट उतार दिया ! चेन्नम्मा के प्रमुख सेनापति बलप्पा ने एक बार तो अंग्रेजी सेना को पीछे खदेड़ कर उनके दो अधिकारियों सर वाल्टरइलियट और स्टीवन्स को बंदी बना लिया था ! तब अंग्रेजों नै धूर्तता से नकली समझौते की चाल चली ! और आग्रह से दोनों अधिकारियों को आजाद करा लिया !
इसी बीच अंग्रेज दोगली चाल चल गये ! दूसरे मोर्चे पर लड़ाई जारी रखी ! फलस्वरूप लड़ाई लम्बी खिंची रसद खतम होने लगी ! और रानी चेन्नम्मा को हार का मुंह देखना पड़ा !
अंग्रेजों ने उन्हें वेल्ह्गील किले मैं कैद रखा ! जहाँ रानी 21 फरवरी 1829 को स्वर्ग लोक गामिनी हो गई !
उनकी याद मैं कित्तूर मैं 22अक्टूबर से 24 अक्टूबर को हर साल उत्सव मनाया जाता है ! नई दिल्ली पार्ल्यामेन्ट मैं उनकी मूर्ति स्थापित है ! आज भी कित्तूर का महल उस वीरांगना की कई यादों को समेटे खड़ा है !
वीरांगना रानी चेन्नम्मा का बलिदान याद दिलाता है अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिये कोई भी मूल्य कम नहीं होता !
कित्तूर मैं रानी की वीरता के किस्से आज भी लोक गीतों मैं गाये जाते है !
1
कर्नाटक के बेल गाँव मैं
जन्मी थी राजकुमारी
23अक्टूबर सन 1728 को
थी वो राजसी नारी !
2
बचपन से ही शिद्दत से
तलवार कटार तकती थी
राजपरिवार मैं जन्मी थी
शस्त्रों मैं रुचि रखती थी !
3
युवा होते होते चेन्नम्मा ने
ऐसा प्रभाव बना डाला
शस्त्र ज्ञान और युद्ध नीति का
अद्भुत ज्ञान सीख डाला !
4
युद्ध कौशल और योग्यता
देख देसाई परिवार दंग हुआ
तुरंत राजा मल्लराज ने
चेन्नम्मा से विवाह किया !
5
मल्लराज के संग चेन्नम्मा
सुखद जीवन जीती थी
एक पुत्र की मात बनी
संयोग सुखद पाती थी !
6
पर कहाँ वक्त एकसा रहता
दंश चलाता भारी
पति पुत्र दोनों स्वर्ग सिधारे
चेन्नम्मा रही अकेली बेचारी !
7
तनि भी विचलित नहीं हुई
एक पुत्र गोद लिया था
बना उसे उत्तराधिकारी
शासन सँभाल लिया था !
8
अंग्रेजों की धूर्त नीति की
रानी तभी शिकार हुई
दत्तक पुत्र राजा नहीं होगा
अंग्रेजों की चाल नई !
9
यही एक बात रानी के
ह्रदय बीच चुभी जाकर
अंग्रेजों के खिलाफ रानी
चिंगारी बन जली भयंकर !
10
डलहौजी ने नियम बनाया
मुनादी करके सुनवाया
जिस राज का उत्तराधिकारी नहीं
वो राज हमारा हो आया !
डा इन्दिरा ✍
क्रमश
भारत का इतिहास वीरांगनाओं से भरा पड़ा है।
ReplyDeleteकुछ के बारे में हम जानते भी नहीं, आप की प्रस्तुति लाजवाब है।
बहुत ही सार्थक रचना। आभार हमारे ज्ञान में वृद्धि करने के लिए।
शुक्रिया ज्ञान वृद्धि तो क्या उन वीरांगनाओं के प्रति जो हमारा फर्ज है उसे पूर्ण करने की कोशिश भर है आप सब के सहयोग से ! 🙏
Deleteबेहतरीन
ReplyDelete🙏आभार
Deleteआभार
Deleteज्ञानवर्धक रचना ।
ReplyDeletethanx
ReplyDeleteसुंदर!
ReplyDeleteबहुत खूब, नमन हिन्द की पावनी धरा को...
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