कलम निगोड़ी ✒
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क्या कह तुम्हें करूँ सम्बोधित
लिखते लगती लाज
प्रिय लिखते ही कलम निगोड़ी
कंप जाता है हाथ !
जाने किस विधि लिखना चाहूँ
मन के सब जज्बात
शुरू कहाँ से कहाँ अंत करूं
मन मैं झंझावात !
इकली सोच रही मन माही
पहले कौन सी बात लिखूं
अनकहीं व्यथा लिखूं पहले
या मन चिती सी बात लिखूं !
या बिना लिखे ही खत भेज दूँ
खुद ही लिख और पढ़ लेना
जो मन भाव तुम्हें मन भाये
उनका उत्तर दे देना !
अंखियों से कुछ काजल लेकर
घोल के असुंअन मसि बनाई
कुछ लिखूं उससे पहले ही
पन्ने पर लो फैल गई स्याही !
लिखा आन लिखा धरा रह गया
अब केवल भाव समझना है
जो भाव तुम तक ना पहुंचे
उन्हें ढूंढ कर पढ़ना है !
डा इन्दिरा ✍
वाह मीता उम्दा बेहतरीन।
ReplyDeleteकोरे पन्ने पे कोरी कहानी लिखी
स्याही से नही अश्कों से लिखी
बांच सके तो बांच ले अनलिखी
नही तो समझूं बेमानी लिखी।
वाह इंदिरा जी मनोभाव की बहुत सुंदर प्रस्तुति। अप्रतिम👏👏👏
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 23मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अति आभार पम्मी जी ...लेखन सार्थक हुआ ..नमन
Deleteवाह्हह प्रिय इंदिरा जी...
ReplyDeleteबेहद दिलकश रचना..👌👌👌
बहुत सुंदरता से माँ के भाव इस निगोड़ी लेखनी ने कह डाले ... दिलकश रचना ...
ReplyDeleteकिसी महान लेखक ने 100 पेज की एक बुक लिखी और सो के सो पेज खाली रखे मतलब एकदम कोरे ।
ReplyDeleteताकि जिसको "जो" पढ़ना हो वो पढ़ ले.
और उस बुक की रेकॉर्ड बिक्री हुई।
आपकी रचना का विचार उस लेखक की सोच से मिलती जुलती है।
उम्दा
अति सुन्दर .....
ReplyDeleteअपरिभाषित प्रेम को कैसे लिखें.....
बहुत सुंदर प्रस्तुति ! बहुत खूब ।
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर भाव
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