साँझ ढले ही
आ जाती है
हर जलते दीपक के साथ
यादै जलती
धीरे धीरे
हर जलते दीपक के साथ !
साँझ अकेली
बैठी बैठी
सोच रही एक ही बात
कौन दे गया
जाते जाते
जीवन भर का ये अवसाद !
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अतल गहराई से निकलती भावनाओं की लौ, जलते दीपक के साथ!
ReplyDeleteअति आभार आपकी प्रतिक्रिया लेखन का वजन बढ़ा गई .🙏
Deleteअंतस के दर्द की भाव पूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय इंदिरा जी | सस्नेह |
ReplyDeleteप्रिय रेनू जी भाव पूर्ण स्नेह का शुक्रिया
Deleteवाह मीता!
ReplyDeleteदर्द ही है यादों की सौगात
न पुछो कब न पुछो कौन ।
आभार मीता ....ये तो सौगातें है अपने ही दे जाये .
Deleteऔर पराये की क्या जुर्रत
दे जाये कोई मौन !
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
स्नेहिल आभार
Deleteवाह अति उत्तम👌👌👌👌
ReplyDeleteस्नेहिल आभार
Deleteसुंदर कविता.
ReplyDeleteढली शाम तो यादों के नाम है ..
आराम कब करे कोई
जो मोहब्बत करे कोई
दिन भी उसी चाहत के नाम है .
कविता और मैं
.
लाजवाब रचना...
ReplyDeleteदीपक के साथ यादों का जलना...
वाह!!!