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वीर बहुटी वीरांगना रानी ईश्वरी kumaari.

वीर बहुटी 
वीरांगना ईश्वरी कुमारी !
( अवध की रानी लक्ष्मी बाई )
सन 1857  में बागी हुए अवध के राजे रजवाडों में से कई लखनऊ के पतन के बाद हवा का रुख देख कर अंग्रेजों से जा मिले ! पर कुछ आत्म सम्मानी रजवाड़े आत्म समर्पण ना करते हुए आखरी श्वास तक जोर आजमाते हुए वतन पर अपना सब कुछ लुटाने मैं लगे रहे !
उनमें से एक थी गौड़ जिले में स्तिथ तुलसी पुर की रानी ईश्वरी कुमारी जिन्हें इतिहास कार अवध की रानी लक्ष्मी बाई भी कहते है !
लखनऊ के बाद बहराईच जिले की बोडी  रियासत से भी दर बदर मजबूर अवध के अंतिम नवाब बिरजिस कादर drऔर उनकी माँ बेगम हजरत महल ने इन्हीं रानी ईश्वरी कुमारी की रियासत की ऐतिहासिक अचवागढी
में शरण ली थी !
यूं तो तुलसीपुर की रियासत अंग्रेजों की आँख में पहले ही खटकती थी क्यों की वो अंग्रेजों की सत्ता स्वीकार नहीं करती थी ! गद्दार दिग्विजय सिंह के कहने पर अंग्रेजों ने बगावत से पहले ही तुलसीपुर के राजा
द्रग नारायण सिंह को गीरीफ्तार करवा कर लखनऊ के बेली गारद में नजर बन्द करवा दिया था !
नजर बंदी की  यातनायें भी द्रगविजय सिंह को नहीं हिला सकी ! प्राण देकर भी उन्होनें फिरंगियों की मदद करना स्वीकार नहीं किया ! फलस्वरूप राजा द्रगविजय सिंह को अंत में  गोली मार दी गई !
पर अंग्रेजों की विडम्बना देखो फिर भी तुलसी पुर पर कब्जे का स्वप्न पूरा नहीं हुआ ! होता कैसे वीर राजा की वीर पत्नी  25 वर्षीय  रानी ईश्वरी कुमारी जो एक दूध मुंहे बच्चे की माँ भी थी  ने उसी धीरता और वीरता के साथ राज्य का भार पूरी जिम्मेदारी से संभाल लिया ! ईश्वरी कुमारी बेगम हजरत महल की तरह ही ओज और तेज से भरी हुई वीरांगना थी ! उन्होनें अंग्रेजों से लोहा लेते हुए सेन्य संचालन के साथ साथ आस पास के राजाओं जिनमें देवी बक्श प्रमुख थे समन्वय बनाये रखने मैं भी अद्भुत कौशल का परिचय दिया !
जिस समय बिरचिस  कादर और बेगम हजरत महल जो तुलसीपुर मैं शरण लिये हुए थे  को दबोचने के लिये अंग्रेज सेना पति जनरल होपग्राफ्ट और ब्रिगेडियर रोक्र्फ्ट ने तुलसीपुर का रुख किया !
रानी को संदेशा भिजवाया ....वो बिरचिस  कादर और हजरत महल को उन्हें सौंप दे और खुद निर्भय होकर  राज्य करें !
इस प्रस्ताव को रानी ने ठुकरा दिया ! उन्होनें इस तरह के ओछे प्रस्ताव को अपनी तोहीन  समझा और सहयोगी मैह्दी हसन बाला राव के साथ सेना ले अंग्रेजों को तुलसीपुर से पहले ही रोकने के लिये निकल पड़ी !
जानती थी अंग्रेजों की सेना विशाल और मेरे मुट्ठीभर सिपाही कोई मुकाबला नहीं !
पर उनकी प्रतिज्ञा थी जब तक बिरचिस  कादर और रानी हजरत महल सही सलामत अचवां गढी से सुरक्षित नहीं निकल जाते तब तक में फिरंगियों को तुलसीपुर मैं कदम नहीं रखने दूंगी !
बेहद विषम मुकाबला ! तुलसी पुर के सैनिकों और रानी ईश्वरी पर एक एक पल भारी था ! और अंग्रेज हर हाल में जीतने पर आमादा ! युद्ध लगतार जारी था !
तभी रानी को संदेश मिला बिरजिस  और रानी हजरत महल सही सलामत गढ़ी से  निकल कर नेपाल की तरफ कूच कर गये !
बस फिर क्या था अचानक रानी ने चाल बदली अपने सैनिकों के साथ कदम .पीछे किये अपने दूध मुंहे बच्चे को पीठ से बाँधा और घोड़े की पीठ पर सवार होंने से पहले धरती को अंतिम  प्रणाम कर सुराही दर्रे से नेपाल सीमा पर स्तिथ दांग  देवखुर की घाटियों में जा समाई !
दांग  देवखुर की घाटियां उस समय तकरीबन सभी बागियों का अभयारण्य था ! वहाँ घने जंगल और पानी और अंधेरा  की वजह से मलेरिया हो जाने का डर था इसलिये अंग्रेज वहाँ अंदर नहीं जाते थे !
इसके बाद रानी ईश्वरी कुमारी के बारे मैं इतिहास मौन सा  है ! कहते है उनका देहांत नेपाल में ही हुआ था ! पर ये भी पक्की प्रमाणित बात नहीं है ! !
पर नि : सन्देह रानी ईश्वरी कुमारी वीरता  और साहस
की मूरत थी एक ऐसी वीरांगना नारी जिस पर पूरे हिंदुस्तान को गर्व होना चहिये !
शत शत नमन वीर आत्मा को ! 🙏

1
सन 1857 में तुलसीपुर पर
अंग्रेज टूट पड़े थे
पर आतताई रानी ईश्वरी के रहते
तुलसीपुर मैं ना घुस सके थे !
2
जिला गौड़ा स्तिथ तुलसीपुर
ईश्वरी कुमारी वहाँ की रानी
जिसे इतिहास कार कहते
दूजी लक्ष्मी बाई रानी !
3
अंग्रेजों की आँख किरकिरी
ईश्वरी सदा खटकती थी
उसके आगे इन नपुंसकों की
दाल कभी ना गलती थी !
4
गद्दार दिग्विजय के कहने पर
राजा  द्रगनारायण को जा पकड़ा
तुलसीपुर के राजा को
बेवजह ही नजर बन्द किया !
5
तिल भर भी हिला ना पाई
उस राजा की वतन परस्ती को
प्राण ले लिये खत्म कर दिया
पर डिगा ना पाई  वीरता को !
6
तुलसीपुर पर कब्जे का सपना
पर रहा अधूरा पूर्ण नहीं
25 वर्षीय ईश्वरी रानी ने
साम्राज्य डोर हाथ लेली !
7
युवा अवस्था बड़ा ओज था
हजरत महल की दीवानी थी
तेजस्वनी बहुत थी बाला
सेन्य संचालन करती थी !
8
हजरत महल पुत्र कादिर संग
तुलसीपुर शरण मांगने आई
हाथों हाथ लिया रानी ने
उनकी पूर्ण सुरक्षा करवाई !
9
यूं भी रानी हजरत महल की
वीरत्व  की दीवानी थी
और शरणागत की रक्षा करना
क्षत्रियों की शान पुरानी थी !
10
अचर गढी मैं ठहराया
वही सुरक्षित ठौर लगी
शरणागत को पूर्ण सुरक्षा
यही मिल सके सही !
11
पर फिरंगी को बात खल गई
उनको शरण में क्यों रखा
स्वयं विद्रोह करती थी हरदम
अब विद्रोहियों का साथ दिया  !
12
ईश्वरी का प्रिय शगल
अंग्रेजों से सदा उलझती थी
सेन्य संचालन हथियार चलाना
अन्य राजाओं से बड़ी मित्रता थी !
13
ओज तेज रानी लक्ष्मी सा
पूर्ण समन्वय रखती थी
आस पास के राजाओं को
अद्भुत कौशल का परिचय देती थी !
14-
हजरत महल तुलसीपुर आई
और मजे से रहती थी
इसी बात से क्रोधित अंग्रेज
तुलसीपुर पर हमला करते थे !
15
जनरल होपग्रांट ब्रिगेडियर शोक्राफ्ट ने
रानी ईश्वरी को संदेश लिखा
नहीं लड़ाई हमारी तुमसे
क्यों विद्रोहियों को  शरण दिया !

डा इन्दिरा  ✍
क्रमशः

Comments

  1. बहुत सुंदर ओजमयी रचना सखी👏👏👏👏👏

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