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वीर बहुटी वीरांगना रानी कलावती

वीर बहुटी
वीरांगना रानी कलावती ✊

रानी कलावती एक छोटे से राज्य के राजा कर्ण सिंह की पतिपरायणा पत्नी थी !
अल्लाउद्दीन खिलजीे के  सेनापति ने दक्षिण भारत पर विजय प्राप्त करने से पूर्व रास्ते मैं आये एक छोटे से राज के राजा कर्ण सिंह को अपनी आधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव भेजा ! बिना युद्ध किये एक क्षत्रिय राजा आधीनता स्वीकार कर ले ....कदापि सम्भव नहीं !
अतः कर्ण सिंह ने यवनों से संघर्ष करने की मन में ठान  ली !
युद्ध में जाने से पहले की क्षत्रिय रवायत के अनुसार राजा  कर्ण सिंह अंतः पुर में अपनी रानी कलावती से विदा लेने के लिये गये ... तो रानी कलावती ने युद्ध में साथ चलने का निवेदन करते हुए बोली ....स्वामी में आपकी जीवन संगिनी हूँ मुझे सदा साथ रहने का अवसर प्रदान करें ! सिंहनी के आघात अपने वनराज से दुर्बल भले ही हो पर सियारों और गीदड़ों के संहार हेतु तो पर्याप्त ही होंगे !
कर्ण सिंह मुस्कुरा उठे .....तुरंत अपनी वीर रानी के भावों को समझ गये और साथ चलने की अनुमति देदी !
कहाँ कर्ण सिंह की छोटी सी सेना और कहाँ यवनों की विशाल सेना अद्भुत मुकाबला था !
रानी कलावती अस्त्र शस्त्र संचलन मैं निपुर्ण थी वह पति राजा कर्ण सिंह के पार्श्व में  रक्षा करती हुई लगातार शत्रुओं का संहार कर रही थी ! दोनों हाथों से वो राजा की तरफ बढ़ने वाले हर हाथ को काट रही थी
इधर स्वाधीनता की रक्षा करने वाले वीर राजपूत लड़ते लड़ते मृत्यु का वरण कर रहे थे ! उनके आगे वेतन भोगी यवन सैनिक थे ! घमासान युद्ध हो रहा था ! इतने में राजा कर्ण सिंह को एक आघात लगा ! और वो मूर्छित हो गये !
कलावती दोनों हाथों से शस्त्र संचालन कर पति के आस पास स्तिथ हर दुश्मन का सफाया कर रही थी ! युद्ध उत्साहित राजपूत सैनिकों के आगे वेतन भोगी यवान क्या टिकते  यवन सेना  पराजित हो गई !
विजय हासिल कर रानी मूर्छित और घायल पति को ले कर वापस लौटी ! राज वैद्य ने बताया ...वार किसी विषैले शस्त्र से किया गया है तभी इतनी लम्बी मूर्छा आई हुई है ! विष शीघ्र ही चूस कर निकालना पड़ेगा तभी राजा का जीवन बच पायेगा !पर विष चूसने वाला जीवित बचेगा ये सम्भावना बहुत कम है पर  इसके अलावा कोई उपाय भी नहीं है !
विष चूसने वाले की तुरंत खोज होने लगी ! इंतजार का एक एक पल रानी को भारी लग रहा था ! उन्होनें तुरंत मन ही मन कठोर निर्णय लिया और स्वयं राजा के घाव का विष चूसने लगी ! जब की विष चूसने की एक विधि होती है रानी उससे सर्वथा अनभिज्ञ थी पर पति के प्राणों की रक्षा हेतु युद्ध स्थल में भी साथ ना छोड़ने वाली रानी यूं विवश अपने पति को मृत्यु को वरण कैसे करने देती ! अंतिम बूँद  तक विष चूसने का प्रयास किया ! फलस्वरूप राजा की मूर्छा टूटी उन्होनें नेत्र खोले तो समीप ही पड़ी प्रेम की प्रतिमा  पर नजर गई ! प्रिय रानी कलावती की कंचन सी देह  विष के कारण  मृत हो चुकी थी !
अपने प्राणोत्सर्ग कर पति के प्राणों की रक्षा करने वाली
कलावती को वीरांगना नहीं तो और क्या कहेंगे !
उनका त्याग अविस्मरणीय और वंदनीय है !
शत शत नमन 🙏

1
इतिहास गवाह है रानियां
जहां जौहर करती है
वही पति जान के खातिर
स्वयं विष पान किया करती है !
2
वैवाहिक गठबंधन यूं तो
बंधन केवल कपड़े का
अगर अटल विश्वास भरा हो
तब है लौह शृंखला का !
3
सतयुग में भी रानी कैकई  ने
दशरथ का साथ ना छोड़ा था
साथ गई थी युद्ध भूमि में
इस बंधन का मान निभाया था !
4
ऐसी ही  रानी कलावती
राजा कर्ण सिंह की पत्नी  थी
अति नेह करती थी पति से
बिछोह नहीं सह सकती थी !
5
अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना
दक्षिण विजय को निकली
राह पड़ी कर्ण सिंह की रियासत
ना पराधीनता  स्वीकार करी !
6
बिना युद्ध किये कोई क्षत्रिय
पराजय क्यूँ स्वीकार करें
मारेंगे या मर जायेंगे
युद्द करना ही स्वीकार्य रहे !
7
यवनों की विशाल सेना थी
राजपूतों की मुट्ठी भर सारी
पर जियाले कब घबराते
आग बना  डाले पानी !
8
अंतः पुर जब पहुंचा राजा
रानी से युद्ध की विदा लई
सहर्ष स्वीकार किया रानी ने
पर संग चलने की बात कहीं !
9
में आपकी जीवन संगिनी
सदा आपके साथ रहूं
पल भर भी बिछोह ना देखूँ
नयनों के सन्मुख तुझे रखूं !
10
माना सिंह नहीं सिंहनी हूँ
आप वनराज है मतवाले
गीदड़ और सियार मार सकूं
मुझमें क्षमता पर्याप्त रहे !
11
राजा कर्ण सिंह मुस्काये
रानी के भावों को समझा
साथ चलो तुम भी सिंहनी
यवनों को चखाना खूब मजा !
12
कर्ण सिंह की छोटी सी सेना
यवनों की विशाल भारी
रानी कलावती निपुर्ण थी
शस्त्र संचालन मैं प्रवीण नारी !
13
अद्भुत कलावती की कला थी
पार्श्व पति के चलती थी
शत्रुओं की संहारक बन के
पति की रक्षा भी करती थी !
14
घमासान युद्ध हो रहा
तीर भाले चलते थे
दोनों तरफ के वीर हताहत
घायल होकर गिरते थे !
15
कर्ण सिंह को आघात लगा
मूर्छित हो गये तत्क्षण
दोनों हाथों तलवार चलाती
रानी अरियों  का करती भक्षण !
16
विजय हासिल की रानी ने
पति को लेकर भी चल दी
मूर्छा क्यूँ ना टूट रही
रानी को चिंता भारी थी
17
राज वैध ने तुरंत बताया
शस्त्र विषैला था भारी
उसी वजह से राजा मूर्छित
बेहोशी उन पर है जारी !
18
कोई विष चूसने वाला
तुरंत बुलाया जाये
पूरे राज्य में करो मुनादी
शीघ्र महल पहुंचाया जाये !
19
एक एक पल भारी रानी पर
बैचैनी बढ़ती जाती थी
पति की मूर्छा नहीं टूटती
रानी घबराती जाती थी !
20
फिर रानी ने कमर कसी
स्वयं विष चूसना शुरू किया
अनभिज्ञ विष चूसने की विधा से
पर पल का ना विलम्ब  किया !
21
जैसे ही विष निकला शरीर से
राजा की मूर्छा टूट गई
आँखें खोली देखा रानी को
पास ही विष से मरी पड़ी !
22
प्रिय संगनी रही सदा जो
पल ना साथ छोड़ती थी
अजर हो गई विष को पी कर
प्रिय के लिये ही जीती थी !
23
इस तरह रानी कलावती
इतिहास प्रष्ठ पर अमर हुई
देश के साथ पति की रक्षा
दिखा गई एक दिशा नई !
24
धन धन है भारत की माटी
धन धन है राजपूती शान
धन धन है भारत की ललना
मृत्यु वरण करें प्रण अपना जान !

डा इन्दिरा  ✍




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