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सीप

सीप ...
सीप मातृ कोख के जैसी
गुण अवगुण सब रख लेती
नव सृजन करती है प्रति पल
आत्मसात सब कुछ करती !

स्वाति बूँद गिरे जो भीतर
सच्चे मोती  सा गढती
निर्मल जल बूँद होय तो
व्यर्थ ना उसको जाने  देती !

प्रसव वेदना सा दुख सहती
अंश अंश विकसित करती
जीवन का सम्पूर्ण सार दे
सच्चे  मोती  को  गढती !

लेकिन .....
असहिष्णु हो गये है हम सब
अहसास  भाव सब त्याग दिये
मोती  की कीमत करते है
मातृ सीप को त्याग चले !

यही मूल्य रह गया  जहाँ  में
त्याग और शुभ कर्मों  का
भूल रहे जनक जननी को
कलुषित सा इतिहास गढ़ा !

डा इन्दिरा  .✍


Comments

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 19 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर मीता वात्सल्य भावों का सुंदर समन्वय।

    ReplyDelete
  3. मातृ सम सीप....
    वाह!!!
    अद्भुत ....लाजवाब...

    ReplyDelete

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