विश्वास ..
बिन विश्वास आस नहीं
बिन आस नहीं कोई बात
बिन बात विश्वास क्या
यही प्रेम आधार !
यही प्रेम आधार
सुनो हिय खोल के ताले
विश्वास पर ही टिके है
सूरज .चंदा .और सितारे !
इसी डोर विश्वास बांध कर
नदियां सागर ओर बहे
पंछी पंख पसार धरा से
ऊंचे नभ उड़ान भरे !
पाहन नहीं ये पावनता है
कह गीरीवर सब नमन करें
जल नहीं सुरसरि प्रवाहित
करें आचमन अंजुरी भरे !
चार अक्षर नहीं चार दिशा में
सशक्त विश्वास संचार करें
दिग दिगंत और चहुँ दिशा में
ब्रम्ह नाद सा भान करें !
इसी एक शब्द के बल पर
शबरी के घर राम गये
इसी शब्द ओज के बल पर
हनुमत परम प्रिय भगत बने !
ये शब्द गर ना होता तो
ना राधे का आदर होता
श्याम से पहले राधे रख कर
कोई ..राधेश्याम नहीं कहता !
पर .....
नाजुक है तनि कोमल गात है
नैनो की कोर से चोट लगे
लेशमात्र भी संशय का विष
मृत प्राय कर नष्ट करें !
शब्द विश्वास सदा चाहता
सिक्त भाव मन पूर्ण समर्पण
नैन मूँद कर चलो साथ में
जैसे नर और नारायण !
डा इन्दिरा गुप्ता " यथार्थ " ✍
वाह बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteभली कही विश्वास की बात
बिन विश्वास जीने की रहती नही आस।
सत्य कहा मीता वीं विश्वास कहाँ है आस !
Deleteअति आभार
अद्भुत सुंदर रचना वाह
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