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रूप / असि

रूप / असि

अपनों मुख असि में देख के
राधे जी सकुचाय
ऐसों रूप संभालूं कैसे
जापे हरी वारी  जाये !
नयन कजरा आँजन बैठूं
कान्हा भासित सम होवे
अँखियन बीच बैठ के जैसे
काजर कोर बसे होवे !
अधर लालिमा जबई  लगाऊं
मन ही मन शरमा जाऊं
अधर बैठ कान्हा  मुस्काये
लाली नाय लगा पाऊ !
असि  मोसे कहे राधिका
तू कान्ह सम लाग रही
साज शृंगार कैसे हो पूरो
जब तक मोर मुकुट नाही !
झुमका .हरवा .नथनी  टीका
सब तोरे ऊपर सोहे
हठ फूल सजे हाथन से
मोय उठाय मुख आप लखे !
बार बार असि  देख रही हो
काहे कारण राधे जी
तोहे मुझमें श्याम दिखत है
सुन मुस्काई राधे जी !
राधेश्याम बसे असि माही
इन्दिरा असि  सी हो जाती
राधे कान्हा हृदय मैं बसते
में मीरा सी हो जाती !

डा इन्दिरा  ✍

Comments

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. स्नेहिल आभार प्रिय श्वेता जी

    ReplyDelete
  3. वाह!!बहुत खूब ।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
  5. मनमोहक रचना वाह
    का काहे ई आँचल बिचारी
    जो हो गायी राधे श्याम पर वारी
    नमन करे निज चित्त कइ बारी
    तोरी कलम पे जीजी मैं तो हिय हारी
    जय राधे जय कृष्ण मुरारी

    ReplyDelete

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