अंधा बेचे आईना विधवा करें शृंगार
कथा कहे बहुरूपिया ढोंगी पढ़े लिलार !
ढोंगी पढ़े लिलार सब करतब है भय्या
कलयुग में जो ना हो जाये कम है भय्या !
गुरुजन शिक्षा बेचते ज्ञान ध्यान के बने बिकय्या
भगत ध्यान की आड़ मैं व्यभिचार की खेवे नय्या !
जांत पांत का भेद बढ़ाते आरक्षण की ओढ़ चदरिया
लोक तंत्र का डंका बाजे नाच रहे सब ता ता थय्या !
जबई बाप बूढ़ों भयो काठ कबाड़ सी है गई मय्या
घर के बाहर करो तुरत ही नाज खाये बेकार अढैय्या !
इस युग की सब रेलम पेल है बढ्ती जाय हाय री दय्या
11 साल की छोरी माँ बन गई कैसो गजब भयो री दय्या
सूरदास मृग नयन है गये गूगौ गावे बनौ गवैय्या
बहरे को जब देय सुनाई अब का कहे लेखनी भय्या !
डा इन्दिरा ✍
लाजवाब--- प्रिय इंदिरा बहन !!!!!!!क्या व्यंग रचा है |कलयुग की सभी निशानियों को शब्दांकित कर डाला वो भी इतने रोचक तरीके से | बहुत शानदार , प्रभावशाली और अद्भुत धारदार रचनात्मक व्यंग | सभी पंक्तियाँ एक से बढ़कर एक हैं |सस्नेह --
ReplyDeleteअति आभार तुरंत प्रतिक्रिया के लिये ....रेनू दी ..आपकी सराहना जेठ मास मैं लगे शीतल वृक्ष की छांव जैसे किसी प्यासे कंठ को शीतल जल मिल जाय !
Deleteलेखन के धार को आपकी परखी नजर और तीक्ष्ण कर गई ...शुक्रिया 🙏
प्रिय इंदिरा बहन मैं आज संयोगवश दोपहर में ऑनलाइन थी | आपका लेखन विशुद्ध विद्वतापूर्ण है भले ही लिख ना पाऊँ पढती जरुर हूँ |
Deleteवाह वाह क्या बात है मीता!!
ReplyDeleteसभी को लपेट लिया वार भी प्रहार भी,
पीतल की हंडिया सोने का मुलम्मा
खुल्ले खुल्ले धोखा धडियां
कागज की एक नाव बनाकर
बने है देखो तारण हारा।
बहुत सुंदर।
वार प्रहार ..🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏पूर्ण समर्थन देती व्यंग भरी प्रतिक्रिया का बहुत आभार ...
Deleteआपकी प्रतिक्रिया लेखन को अर्थ दे गई मीता ! 🙏
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 04 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteलेखन साझा करने का आभार ...कल जरूर हाजिर होगी यशोदा सखी 🙏
Deleteवाह सखी खूब प्रयोग किया अपनी लेखनी की धार का, सभी पर भरपूर कटाक्ष👌👌👌👌
ReplyDeleteस्नेहिल आभार सखी
Deleteमन बहुत दिनों से खदबदा रहा था उस पर लेखन का न्यौता ....एक पंथ दुई काज हो गये
मन की निकली सगरी व्यथा !
😀😀🙏
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना 👌👌👌
भरपूर कटाक्ष
आभार
Deleteसीधी बात समझे नहीं कोई
कवि कलम कहे मन सोई
वाह ! तीक्ष्ण कटाक्ष, वर्तमान परिस्थितियों का सटीक वर्णन डॉ इंदिरा जी।
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