उद्धव / सखियाँ ...उवाच ...
बोली सखियाँ सुनो उद्धव जी
अनहोनी सी बात कहीं जाओ
यहाँ रंगे सबई श्याम रंग
दूजे रंग की काहे बात चलाओ !
मेरे श्याम की काली कमली
दूजों रंग ना वाकू भाय
एसो पक्को चढ़ो श्याम रंग
छोड़े से ना छुड़ायो जाय !
दूजी बोली सुनो उद्धव जी ....
श्याम ही रंगिया श्याम ही धोबिया
कौन नयो रंगरजिया लाय
बड़ों पुरानो कार साज है
पक्को रंग ही सिर्फ रंगाय !
नकर चकर की बात ना कोई
सब के मन कू येही भाये
एकई रंग रगाने खातिर अब
माथा पच्ची कौन करे जाय !
तीजी बोली सुनो उद्धव जी .....
घर की सी बात तुम्हें बताय
मन माफिक सो काम करे है
तनी माखन की कीमत याकी
एसो सौदों कहाँ पुनि पाय !
ता उमर फिर करें चाकरी
जब चाहो तब घर आ जाय
एक बार नहीं मंतर आये
दूजी बार वही दाम रंगाय!
उद्धव तभी विचारन लागे .......
का का सखियन ज्ञान बताय
ज्ञान चक्षु सब खुलि गये मेरे
जप तप व्यर्थ गयो सब हाय !
ब्रम्ह ज्ञान उवाच रही थी
निरी गवारन जिन्हें समझो आय
समझ गयो क्यों श्याम पठाये
बृज की इन ग्वालिन के पास ! !
सच्चे सरल नेह के आगे
गूढ़ ज्ञान धरो रही जाय
निर्गुण सगुण सब व्यर्थ बात है
विश्वास भक्ति का एक ही मार्ग !
दृढ़ विश्वास और आस्था
जो चाहो सो कर जाय
सच्चा नेह निष्प्राण पाषाण को
संजीव ब्रम्ह बना पूजवाय !
डा इन्दिरा ✍
वाह बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteउद्धव अपनी ज्ञान गठरिया समेटे दौडे होंगे माधव के पास और बोले श्री हरि से जाक..
उद्धव ज्ञान गठरिया समेटे
आये माधव के पास
हे मुरारी मै हारा
तूझ प्रेम पराकाष्ठा मे ही निहित
है परभव आनंद
ये आज सीखा दिया
मुझ अकिंचन को
अपढ़, प्रेम पगी गोपियन ने।
जय कृष्ण मुरारी की जय आकंठ प्रेम मेडूबे भक्त जनों की।
बहुत सुंदर उद्धव और सखीयों के उदगार आपकी भक्ति रसमय लेखनी से मीता अज्ञानी कही जाने वाली गोपियों का अनंत प्यार ज्ञानी उद्धव के परभव ज्ञान से जीत गया।
बहुत बहुत सरस भक्ति मे डूबा काव्य।
ता उमर फिर करें चाकरी
ReplyDeleteजब चाहो तब घर आ जाय
एक बार नहीं मंतर आये
दूजी बार वही दाम रंगाय!
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ब्रम्ह ज्ञान उवाच रही थी
निरी गवारन जिन्हें समझो आय
समझ गयो क्यों श्याम पठाये
बृज की इन ग्वालिन के पास ! !
. बहुत ही बेहतरीन तरीके से उद्धव का घमंड तोड़कर ब्रह्म ज्ञान से नवाजा दीदी। अति उत्तम👌👌👌👏👏👏
अतुल्य आभार भाई अमित जी
Delete🙏🙏🙏🙏🙏
काव्य की गहराई में उतर मूल भाव को समझा आभार
कान्हा का स्वभाव मृदुल है
तिक्त भाव नहीं भाये
उद्धव अति प्रिय भक्त थे
पर गर्व भाव धरे माहे
याही से वृंदावन भेज्यौ
वही जाकर बात समझ आये
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ReplyDeleteवाह दीदी जी लाजवाब रचना बहुत सुंदर
ReplyDeleteगोपीयन के प्रेम की बरसी बदरीया
धुल गयी उद्धव की दम्भीत चदरीया
फिर मिथ्या ज्ञान का रंग सब छूटा
हिय उद्धव हरी प्रेम का अंकुर फूटा