वीर बहुटी
रानी जिंद कौर उर्फ
जिंदा रानी ..🙏
पंजाब के राजा रणजीत सिंह की 20 रानियां थी राजा की सबसे छोटी रानी थी जिंद कौर अद्भुत किरदार रहा उसका ! उसके अदम्य साहस की वजह से लोग उसे "जिंदा रानी " कहा कहते थे !
जिंद कौर राजा रणजीत सिंह जी की अकेली जिंदा संतान दिलीप सिंह की जननी थी ! राजा रणजीत सिंह के देहांत के बाद जिंद कौर एक ऐसी वीरांगना बन के उभरी जिन्होंने सिक्ख समुदाय को दुनियाँ के सामने ना हार जाने की हर सम्भव लड़ाई लड़ी !
जिंद कौर का विवाह भी किसी एक खास कारण से राजा रणवीर जी के साथ हुआ था
! राजा रणबीर सिंह के इकलौते वारिस खड्ग सिंह के बिगडते स्वास्थ से चिंतित क्या शायद समझ चुके थे की उनके बाद सियासी गद्दी संभालने वाला कोई नहीं होगा ! इसी कारण जिंद कौर की पिता से उनकी गुणवान पुत्री जिंद का हाथ मांगा और अपने से आधी उम्र की कन्या से विवाह किया ! शादी के कुछ समय बाद ही दिलीप सिंह का जन्म हुआ ! पर पुत्र का सुख राजा अधिक दिन नहीं देख सके ! स्वर्ग सिधार गये !
उनकी मृत्यु के बाद सिक्ख समुदाय बिखरने लगा ! विश्वास घाती अंदर ही अंदर सिक्ख ताकतों को पैसे के लालच मैं अंग्रेजों के हवाले करने लगे !
दिलीप सिंह को गद्दी मिली तब वह बहुत छोटे थे ! पर राजा रणजीत सिंह के वारिस होने के कारण उन्हें ही गद्दी पर बैठाया गया पर कोई फायदा नहीं हुआ उनकी आड़ में सियासी मसलों का हल करने वाला हरी सिंह
अपने पद का गलत इस्तमाल करने लगा ! जिसके विरुद्ध रानी जिंद कौर ने आवाज उठाई ! अपने 5 वर्षीय पुत्र को धीरे धीरे सियासी दाव खेलने लायक बनाने लगी ! उंहोंने सियासी ताकत और अपनी सेना को मजबूत बनाने के लिये दिलीप सिंह की सगाई हजारा प्रदेश के शासक की पुत्री से कर डाली परिणाम सुखद हुआ ! रानी की इस कोशिश ने रानी को पूरे सिक्ख समुदाय से " माँ " कहने का दर्जा प्राप्त करवा दिया !
पर इन खुशियों के बीच बुरा समय कब आ गया पता नहीं चला ! सन 1845 मैं अचानक एक दिन ब्रिटिश सरकार द्वारा सिक्खों के साथ युद्ध करो या दासत्व का ऐलान किया गया ! अंग्रेजों की सेना की तुलना मैं कम होती हुए भी सिक्खों ने लड़ना स्वीकार किया ! जम कर युद्ध हुआ जैसा की लगता था रानी हार गई ! और बंदी बना ली गई .! पुत्र को उनसे अलग कर दिया गया यातनायें दी जाने लगी ! कहर टूटते रहे पर रानी टूटी नहीं ! वर्षों के प्रयास के बाद रानी को नेपाल काठमांडू भेज दिया ज्ञा वहां पर भी अंग्रेजों की नजर बंदी रहती थी वो जानते थे रानी को मौका मिला तो वो फिर सिक्ख समुदाय की फौज तैय्यार कर लेगी !
लम्बे अरसे तक दिलीप सिंह को उनसे मिलने नहीं दिया गया ! वो लगातार माँ से मिलने की कोशिश करते रहे !
पर सरकार दोनों के मद्य दीवार बनी रही ! अंत मैं राजा दिलीप सिंह ने सर जांन जो विदेश में सदा उनके सहायक रहे उनकी मदद से नेपाल जाकर अपनी माँ से मिलने का फैसला किया !
अफसोस जब दिलीप सिंह अपनी माँ से मिलने नेपाल आये वो अंग्रेजों की यातना सह सह कर नेत्रहीन .अशक्त और बहुत वृद्ध हो चली थी !नितांत अकेली जीवन के अंतिम पड़ाव पर आ खड़ी हुई थी !
यह वो समय था जब जब भारत और चीन का युद्ध हुआ था और उस समय सिक्ख रेजीमेंट युद्ध में सबसे अधिक उभर कर सामने आई थी !
इस गर्व भरे और सम्मानजनक माहौल के बीच दिलीप सिंह अपनी माँ को अपने साथ इंग्लेण्ड ले जाने मैं सफल हो गये थे ! शायद नियति को रानी पर दया आ गई वर्षों से बिछड़े माँ बेटे का मिलन करवा ही दिया !
पुत्र को ना देख पाने का दुख और दूसरी तरफ पुत्र का स्पर्श सुख .....माता और पुत्र दोनों रोमांचित थे ..कल्पना करें जरा उस दृश्य की तो पूरे बदन में एक झुरझुरी सी फैल जाती है रोंगटे खड़े हो जाते है और आँखें नम हो जाती है !
कैसा अद्भुत दृश्य रहा होगा नेत्र हीन आँखें पुत्र नेह से गीली हो स्पर्श नेत्र से पुत्र को देखने का प्रयास कर रही होगी ! माँ का आँचल पुत्र नेह से गीला हो रहा होगा !और इधर पुत्र भी वर्षों से बिछडी माँ से वात्सल्य भाव लिपटा होगा ! कहते सुनते ही कलम भीग गई तब ना जाने वहाँ क्या हुआ होगा !
एक अगस्त 1863 की सुबह जाने कब नींद के दौरान ही रानी जिंदा ने अपने जिंदा जीवन की आखरी सांस ली ! दिलीप देख सुन कर सन्न रह गये ! पर अंतिम समय माँ उनके पास थी ये सुकून बहुत था उनके लिये ! अंतिम संस्कार के लिये दिलीप सिंह को उनका पार्थिव शरीर लाने की अनुमति नहीं मिली जाने क्यूँ तब तो हमारा देश आजाद हो चुका था ! ? ?
कुछ समय के बाद दिलीप सिंह शव को मुम्बई ले आये और वहाँ उनका दाह संस्कार गोमती नदी के पास किया गया वही उनका एक स्मारक भी बना हुआ है !
नमन जिंदा रानी को
मर कर भी जिंदा स्वाभिमानी को 🙏
1
यूं तो रानी जिंद कौर का
इतिहास बहुत है छोटा है
नहीं लड़ी बड़ी लड़ाई
ना कोई युद्ध भी जीता है !
2
पर कई जियाले बिना लड़े ही
इतिहास अमर हो जाते
जिंद कौर अपने कृत्यों से
जिंदा रानी कहलाते !
3
अति रोचक और अद्भुत
रानी जिंद कौर का जीवन
रणजीत सिंह के 19 रानीया
बीसवीं जिंद से हुआ लगन
4
चिंतित ना तनि भी विचलित
अदम्य साहसी बाला वो
व्यवहार के कारण ही कहलाई
अदम्य साहसी जिंदा रानी वो !
5
यूतो राजा के कई संतान हुई
पर कोई भी ना बच पाई
जिंद कौर से शादी करनेकी
तब इच्छा मन में आई !
6
दिलीप सिंह जिंद के पुत्र थे
रणजीत सिंह की आखरी संतान
अधिक समय नहीं दे पाये
राजा के शीघ्र ही निकले प्राण !
7
वृद्ध राजा किशोरी रानी
कैसे जीवन खुश हाल रहे
दिलीप सिंह के होते ही
राजा स्वर्ग सिधार गये !
8
बिखरने लगी सिक्ख व्यवस्था
दोगले सामाज में बसते थे
अंदर ही अंदर राज्य को
अंग्रेजों के हवाले करते थे !
9
संरक्षक हरिसिंह घाती था
दिलीप की आड़ खेलता था
पद का इस्तमाल हमेशा
गलत तरीके करता था !
10
अभी दिलीप बहुत छोटे थे
रानी सब कुछ देख रही
धधक रही आग सीने मैं
हरिसिंह के विरुद्ध खड़ी हुई
11
दूरदर्शिता रानी ने सोचा फिर
भारी जुगत एक लगाई
दिलीप सिंह की शादी
हजारा प्रदेश की कुंवारी से करवाई !
12
इससे बल मिला रानी को
सेना को सूद्रड कीना
पुत्र को सियासत सिखलाई
दक्ष और दृढ़ भी कीना !
13
सियासी दांव पेंच सिखाये
अस्त्र शस्त्र निपुर्ण किया
सिक्ख समुदाय बिखर ना जाये
अति सुन्दर प्रयत्न किया !
14
" माँ " की पदवी पाई रानी ने
सिक्ख उन्हें माँ कहते थे
रानी की हर आज्ञा खातिर
मर मिटने को तत्पर रहते थे !
15
पर बुरा समय कब आ जाये
कह कर कभी नहीं आता
अंधकार जैसे दिन को
धीरे धीरे खा जाता !
16
सन 1845 मैं अंग्रेजों ने
अचानक युद्ध एलान किया
दासत्व मांनो या युद्ध करो
फरमान रानी को भिजवाया !
17
भारी युद्ध हुआ उस पल
सैकड़ों वीर मरते थे
अंग्रेजों की सेना भारी
सिक्ख हारते जाते थे !
18
इस हार ने मानो रानी पर
वज्र समान प्रहार किया
विलग कर दिया पुत्र से
कारागृह में बंद किया !
19
कारावास की यातना समक्ष
पुत्र से दूरी अधिक सताती थी
वर्षों रानी बन्द रही
पुत्र से मिलने नहीं दी जाती थी !
20
लम्बे अंतराल तक रानी
पुत्र से नहीं मिल पाई
अंग्रेज रहते नजर गड़ाये
कोई रानी से ना मिल पाये !
21
डर था अंग्रेजों को भारी
रानी की शक्सियत ऐसी है
जरा मौका मिला इसे
सिक्खों की इसमें भक्ति है
22
सशक्त करेगी सिक्खों को
रानी मैं अद्भुत शक्ति है
जिंद नहीं जिंदा रानी है
दुर्गा जैसी इसमें शक्ति है
23
बहुत प्रयास के बाद रानी
नेपाल देश चली आई
काठमाण्डू मैं रानी को
कुछ सही व्यवस्था मिल पाई !
24
इधर दिलीप सिंह युवा हुए
बिन माँ के जीवन जीते थे
मिल ना पाये रानी से
लाख कोशिशें करते थे !
डा इन्दिरा ✍
क्रमशः
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