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आहट

आहट ...

कभी दबी सी आहट होती
थम थम के रुक जाती है
जैसे कोई धीरे धीरे
सोच सोच कर चलता है !

कुछ कहूँ या चुप रह जाऊं
उलझन मैं जज्बात रहा
कहते कहते रुक सा जाता
रुकते रुकते कह जाता !

अल्फाजों से परहेज हो रहा
मौन सैन से बतियाता
कभी छुपे कभी सामने
कभी नजर भी ना आता !

कभी आधा कभी अधूरा
कभी पूरा लगे अपना
कभी खाली हाथ रहे
जैसे कुछ नहीं मेरा !

असमंजस मैं द्वार खड़ी है
खोलूँ या पुनि बंद करूं
क्या आयेगा आने वाला
या केवल मन भ्रमित करूं !

डा इन्दिरा ✍

Comments

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. वाह बहुत सुन्दर ।
    कभी खाली हाथ रहे
    मन जाने क्या क्या कहे…

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  3. "असमंजस मैं द्वार खड़ी है 
    खोलूँ या पुनि बंद करूं 
    क्या आयेगा आने वाला 
    या केवल मन भ्रमित करूं !"
    वाह दीदी लाजवाब सुंदर रचना बेहद उत्क्रष्ट 👌
    जज्बातों के उलझन का 
    जो बुना आपने ताना बाना 
    निज जीवन में यही हाल जग का 
    लगा ज़िन्दगी का हो तराना

    वाह वाह...
    सादर नमन सुप्रभात

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह वाह आपकी अति सुन्दर प्रतिक्रिया बहन आँचल !
      मन भांति पंक्तियों को पकड़ उसका प्रति उत्तर देना आपका मेरे मन को भाता है !
      ये प्रति उत्तर तेरा मेरा काव्य सार्थक करता है !

      Delete
  4. स्नेहिल आभार सखी यशोदा जी ! 🙏

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  5. असमंजस मैं द्वार खड़ी है
    खोलूँ या पुनि बंद करूं
    क्या आयेगा आने वाला
    या केवल मन भ्रमित करूं !
    वाह बेहतरीन रचना

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    Replies
    1. स्नेहिल आभार अनुराधा जी

      Delete
  6. सुन्दर रचना

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  7. वाह!!बहुत उम्दा रचना कुसुम जी ।

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  8. प्रतीक्षा में एक आहट से जगी आशा का मोल बस वही जान पाता है जो प्रतीक्षा करता है | कई बार भ्रम भी कितने सुहाने लगते हैं | सुंदर रचना प्रिय इंदिरा जी |

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