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नया शोर

नया शोर ....🌋

दिन चढ़ता है नई भोर है
तीव्र चपल कुछ नया शोर है !
उषा की लाली तप्त है
पवन चल रहा जरा सख्त है !

चारों ओर भरी नीरवता
बिखरी है हर ओर व्यवस्था
तूफां जब आने को होता
हो जाती है यही अवस्था !

सुप्त ज्वाला मुखी खौल रहा है
दिग दिगंत भी डोल रहा है
खदक रही मन व्याकुलता है
रौरव शांत पर बिफर रहा है !

शीतल मलय सुलगती लगती
लगे  विसंगति दौड़ लगाती
मौन मन भारी शोर मचाता
प्रलयंकर सा भाव जगाता !

कुछ विवश सा उदभव पनपे
माटी का कण कण तन  झुलसे
विप्लव आने को हो जैसे
चहुंओर नव शोर सा बरपा !

डा .इन्दिरा  .✍

Comments

  1. वाहः
    बहुत खूब

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  2. वाह दीदी जी बेहद खूबसूरत लाजवाब रचना सुंदर शब्द
    लगा मन और मौसम की ताप एक हो गयी
    वाह

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    Replies
    1. काव्य की आत्मा तक पहुंचने का आभार

      Delete
  3. बेहतर शब्द संयोजन के साथ मन व प्रकृति के अद्भुत सामंजस्य की प्रस्तुति देती सुंदर रचना। अति उत्तम

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    Replies
    1. स्नेहिल आभार अभिलाषा जी

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  4. वाह! बहुत सुंदर रचना!!! बधाई!!!

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  5. अतुल्य आभार विश्व मोहन जी !

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  6. वाह बहुत सुन्दर!!

    रौशनी जैसे जाने को है
    कोई पास नही किसी का साथ नही
    कुछ सुगबुगाहट है प्रलय जैसे आने की ..
    अप्रतिम रचना ।

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    Replies
    1. स्नेहिल आभार मीता ...आहट सुनी ...शुक्रिया

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  7. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 4 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. शुक्रिया पम्मी जी सम्मनित करने का धन्यवाद

      Delete
  8. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  9. वाह्ह....प्रिय इन्दिरा जी।
    ऋतु के रंग आपके खूबसूरत शब्दों के संग
    शोभा अद्भुत झूमे बदरा संग मन मलंग

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    Replies
    1. मन भावन प्रतिक्रिया
      खुश हुआ जिया
      प्रिय श्वेता आप हो
      बेहतर वक्ता और श्रोता !
      😃😂

      Delete
  10. बहुत खूबसूरत रचना।
    अच्छा शब्द चयन ,शब्दों का भंडार है आप का लेखन।
    भाव भी लाजवाब है

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