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तुम बोलो

तुम बोलो ...

में चुप हूँ
आज
तुम बोलो
जर्रा जर्रा
मन पट खोलो ! 
बहते बहते
मेरे घट में
सहज सरस
रस सा घोलो !
प्यार ...मनुहार
या वीतराग कुछ
जो चाहो सो गाओ
जीवन को
पुनि राग बनाओ
बूँद बूँद
कर  जीलो ! !

डा इन्दिरा .✍


Comments

  1. खूबसूरत रचना इंदिरा जी

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  2. बहुत सुन्दर रचना . ..👌👌👌

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