Skip to main content

मेघ मल्हार

मेघ मल्हार ...

मेघ मल्हार ऋतु आई बसन्ती
पावस नार हुई  रसवन्ती
बूँद बूँद पायल  सी छनके
चले नार कोई रसवन्ती !
मेघ मल्हार ऋतु .......
भर भराय बदरा झरी आये
बहे नयन जैसे विरहणी
कुँज कुँज सारे रस भीगे
ज्यों नहाय निकले कुलवन्ती !
मेघ मल्हार ऋतु .....
विहसे पुहुप धरा अंकुराई
पात पात दोने भरी लाई
कलरव कर खग चहकन लागे
स्वागत स्वर ज्यू गाये चातकी !
मेघ मल्हार ऋतु .........
गदराई  हर डारी  डारी
केसर महके क्यारी क्यारी
पंख पसार मोर नचियाये
ऋतु बनाय दीनी सतरंगी !
मेघ मल्हार ऋतु आई बसन्ती
पावस नार हुई रसवन्ती ! !

डा .इन्दिरा .✍



Comments

  1. शब्दों को क्या खूब सजाती हैं आप कविता के भाव निखर जाते हैं। बहुत ही सुन्दर रचना बार बार पढ़ने का मन करे ऐसी। बधाई सखी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. नेह मेह मैं भिगो गई सखी
      तेरी प्रतिक्रिया आज
      मन मेरा हुआ
      मेघ मल्हार सी राग !
      आभार 🙏

      Delete
  2. मेघ मल्हार ऋतु आई बसन्ती
    बेहद खूबसूरत मन प्रसन्न हो गया

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी प्रसन्नता मेरा उपहार
      लेखन सार्थक हुआ !

      Delete
  3. वाह!!!बहुत ही खूबसूरत !

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्नेहील आभार शुभा जी

      Delete
  4. "गदराई हर डारी डारी
    केसर महके क्यारी क्यारी
    पंख पसार मोर नचियाये
    ऋतु बनाय दीनी सतरंगी !
    मेघ मल्हार ऋतु आई बसन्ती
    पावस नार हुई रसवन्ती ! !"

    वाह दीदी जी मनमोहक सुंदर रचना
    जो गाए जीजी मेघ मल्हार
    बरखा बरस करे तोरा मनुहार
    सादर नमन सुप्रभात दीदी जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्नेहिल आभार आँचल ..नेह मेह से सराबोर करती आपकी प्रतिक्रिया ...अनुपम नेह बहन

      Delete
  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ९ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  6. वाह अद्भुत शब्दों मे मल्हहार उमड़ घुमड़ रहा है ।
    सुंदर।

    ReplyDelete
  7. आदरणीय इंदिरा जी
    आपकी लेखनी को मेरा सादर नमन ।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वीरांगना सूजा कँवर राजपुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई

वीर बहुटी वीरांगना सूजा कँवर राज पुरोहित मारवाड़ की लक्ष्मी बाई ..✊ सन 1857 ----1902  काल जीवन पथ था सूजा कँवर  राज पुरोहित का ! मारवाड़ की ऐसी वीरांगना जिसने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम मैं मर्दाने भेष में हाथ मैं तलवार और बन्दूक लिये लाड्नू (राजस्थान ) में अंग्रेजों से लोहा लिया और वहाँ से मार भगाया ! 1857 से शुरू होकर 1947 तक चला आजादी का सतत आंदोलन ! तब पूर्ण हुआ जब 15 अगस्त 1947 को देश परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त हुआ ! इस लम्बे आंदोलन में राजस्थान के योगदान पर इतिहास के पन्नों मैं कोई विशेष  चर्चा नहीं है ! आजादी के इतने  वर्ष बीत जाने के बाद भी राजस्थानी  वीरांगनाओं का  नाम और योगदान कहीं  रेखांकित नहीं किया गया है ! 1857 की क्रांतिकी एक महान हस्ती रानी लक्ष्मी बाई को पूरा विश्व जानता है ! पर सम कालीन एक साधारण से परिवार की महिला ने वही शौर्य दिखलाया और उसे कोई नहीं जानता ! लाड्नू  में वो मारवाड़ की लक्ष्मी बाई के नाम से जानी और पहचानी जाती है ! सूजा कँवर का जन्म 1837 के आस पास तत्कालीन मारवाड़ राज्य के लाडनू ठिकाने नागौर जिले ( वर्तमान मैं लाडनू शहर )में एक उच्च आद

वीरांगना रानी द्रौपदी

वीरांगना रानी द्रौपदी धार क्षेत्र क्राँति की सूत्रधार .! रानी द्रौपदी निसंदेह ही एक प्रसिद्ध वीरांगना हुई है जिनके बारे मैं लोगों को बहुत कम जानकारी है ! छोटी से रियासत की रानी द्रौपदी बाई ने अपने कामों ये सिद्द कर दिया की भारतीय ललनाओ मैं भी रणचण्डी और दुर्गा का रक्त प्रवाहित है ! धार मध्य भारत का एक छोटा सा राज्य जहां के  निसंतान  राजा ने  देहांत के एकदिन पहले ही अवयस्क छोटे  भाई को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया 22 मैं 1857 को राजा का देहांत हो गया ! रानी द्रौपदी ने राज भार सँभला ! रानी द्रौपदी के मन मैं क्राँति की ज्वाला धधक रही थी रानी के राज संभालते ही क्राँति की लहर द्रुत गति से बह निकली ! रानी ने रामचंद्र बाबू को अपना दीवान नियुक्त किया वो जीवन भर रानी के समर्थक रहे ! सन 1857 मैं रानी ने ब्रितानिया का विरोध कर रहे क्रांतिकारीयों  को पूर्ण सहयोग दिया सेना मैं वेतन पर अरब और अफगानी सैनिक नियुक्त किये जो अंग्रेजों को पसंद नहीं आया ! अंग्रेज रानी द्रौपदी की वीरता और साहस को जानते थे सम उनका खुल कर विरोध नहीं करते थे ! और रानी कभी अंग्रेजो से भयभीत नहीं हुई उनके खिलाफ क्रँतिक

वीर बहुटी जालौर की वीरांगना हीरा दे

वीर बहुटी जालौर की वीरांगना हीरा दे सम्वत 1363(सन 1311) मंगल वार  वैशाख सुदी 5 को दहिया हीरा दे का पति जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के पारितोषिक  स्वरूप मिले धन की गठरी को लेकर बेहद खुश घर को लौट रहा था ! उसे जीवन मैं इतना सारा धन पहली बार मिला था ! सोच रहा था इतना धन देख उसकी पत्नी हीरा दे कितनी खुश होगी ! युद्ध की समाप्ति के बाद इस धन से उसके लिये गहने और महल बनवाउगा और दोनों आराम से जीवन व्यतीत करेंगे ! अल्लाउद्दीन के दरबार मैं उसकी बहुत बड़ी हैसियत  समझी  जायेगी ! वो उनका खास सूबेदार कहलायेगा ! ऐसी बातैं सोचता हुआ घर पहुंचा ! कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए धन की गठरी पत्नी हीरा दे के हाथों मैं देने हेतु आगे बढ़ा .... पति के हाथों मैं इतना धन .चेहरे की कुटिल मुस्कान .और खिलजी की युद्ध से निराश हो कर जाती सेना का वापस जालौर की तरफ लौटने की खबर ...हीरा दे को धन कहाँ से और कैसे आया इसका का राज  समझते देर नहीं लगी ! आखिर वो भी एक क्षत्राणी थी ! वो समझ गई उसके पति दहिया ने जालौर किले के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फौज को बता कर अपने जालौर देश और पालक राजा