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नव दिवस अभिषेक

नव दिवस अभिषेक ...

प्राची से निकला है दिनकर
नव युग का अरमान लिये
नव प्रभाती नव जाग्रति
उज्वल से कुछ भाव लिये !

स्वर्णिम किरण भासित है जल थल
स्वर्ग धरा सा भरम धरे
मस्तक ऊंचा किये शिखर है
शिशु से बादल खेल रहे !

नीला अम्बर स्वर्णिम दिनकर
अंतस ओज के स्वर भर लें
पावन सा हर मन मंतर है
नव दिवस अभिषेक करै !

डा .इन्दिरा .✍
30 .7  .2018

Comments

  1. वाह .....सुन्दर सृजन

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा लिखा सखी
    बहुत उम्दा और गहरी सोच।

    हर रोज जन्म लेता नव दिन
    हर रोज ख़त्म हो जाता है
    पर कुछ घंटों के जीवन में
    वो कितना कुछ कर जाता है
    इस कालचक्र की गोदी में
    न जाने कितने लाल हुए
    कुछ अमर हुए इस धरती पर
    कुछ के जीवन बेहाल हुए
    फिर भी ये चक्र चले अविरत
    अपना अस्तित्व बचाने को
    संघर्ष कसौटी जीवन की
    दुनिया को पाठ पढ़ाने को

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह वाह प्रतिक्रिया स्वरूप पुनः काव्य रचना बेहतरीन नीतू जी ....उम्दा

      Delete
  3. वाह आदित्य का स्वागत और कर्म का आगाज करती सुंदर रचना मीता ।
    अप्रतिम

    ReplyDelete

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