संकल्प गठबंधन ...
भोर भई अब जागो मनवा
धरा वत्सला जगा रही
शुभ्र सुहानी सतरंगी सी
सुबह पुकारे अब नींद नहीं !
आ तुझको निष्पाप हँसी दूँ
कर्म गति अवीलम्बन दूँ
उठ दिनकर सा तुझे बना दूँ
हाथों में वर्तमान पिघला दूँ !
जीवन को साँचे में ढाल कर
एक अभय वरदान बना दूँ
भाव बहे संकल्प सरीखे
ऐसा हर पथ विजन बना दूँ !
संकल्प करे तेरा आव्हान
उसके संग गठबंधन हो
सुबह हुई अब जागो मनवा
सृजन हार का मान करो !
डा .इन्दिरा .✍
शुक्रिया शुक्रिया ....भाई अमित जी .. सृजन को सार्थक कर गई आपकी प्रतिक्रिया साथ ही हौसला अफजाई भी कर गई ....सम्मान के लिये स्नेहिल आभार !
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर शाश्वत सी प्रेरणा दायक रचना ।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १६ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह बेहतरीन रचना
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