भोर तपस्वी ....
शान्त भोर भी एक तपस्वनी
जैसी पावन लगती है
रात रात भर करें तपस्या
प्रात: काल ही उठती है !
जल थल सबको वरद हस्त से
फिर वरदान लुटाती है
देय उजाला अग्नि पुंज को
उज्वल दिवस बनाती है !
जल , पवन और धरा विनम्र से
शान्त भाव सब ग्रहण करें
कश्यप पुत्र को पाकर सन्मुख
भर भर अंजुरी आचमन करें !
कर्म भाव दिनकर को देकर
रथ आरूढ़ कराती है
तिल भर अधिक ना तिल भर कम
ये गति ना टूटने पाती है !
डा इन्दिरा .✍
बेहतरीन रचना इंदिरा जी
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteकश्यप पत्र सूर्य की अवगाहना करती भोर कोरी सजीली पावन सी
ReplyDeleteवाह मीता सुंदर रचना ।
वाह!!बेहतरीन रचना प्रिय इन्द्रा जी ।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteशुक्रिया bro
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