मानव भया चौपाया ...
मानव बना चौपाया भाई
मानव बना चौपाया
दोपयौ की सभ्य संस्कृति
सब कुछ है बिसराया !
भाई मानव बना ......
दो पायों सी कहा श्रेष्ठता
दिखती अब तो केवल कटुता
शब्दों मैं ज्वाला छाई है
पसरी है हर ओर विकटता
कैसा भरम है छाया भाई
कैसा भरम है छाया
मानव बना चौपाया ......
ज्ञान बुद्धि सब गौण हो गये
हम चौपायों के पर्याय हो गये
पर हिताय शब्द मौन हो गये
स्वार्थ सिद्द सब बोल हो गये
कैसा युग है आया भाई
कैसा युग है आया
मानव बना चौपाया ........
मार काट दो चीर फाड़ दो
व्यर्थ विवाद का गगन नाद हो
सर्वोपरी अब "में "हो रहा
हम का परिलक्षित नहीं विधान हो
कैसा दुर्दांत है छाया भाई
कैसा दुर्दांत है छाया
मानव बना चौपाया भाई
मानव बना चौपाया !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
मार काट दो चीर फाड़ दो
ReplyDeleteव्यर्थ विवाद का गगन नाद हो
सर्वोपरी अब "में "हो रहा
हम का परिलक्षित नहीं विधान हो
कैसा दुर्दांत है छाया भाई
हृदयस्पर्शी रचना इंदिरा जी
हृदय से नमन 🙏
Deleteअतुल्य आभार भाई अमित जी
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