ज़रा अवस्था ...
ज़रा अवस्था परम पवित्र सी
ढेरों अनुभव भरी हुई
ज्ञान भरी स्वर्ण गगरिया
पर ठोकर मैं धरी भई !
जरा ध्यान से निरखो इसको
ये सिर्फ तुम्हारा सुख चाहे
चौबीस घंटों में से केवल
चाहत के कुछ पल चाहे !
जीवन सारा वार दिया
जिन खून के कतरों पर
चाहत का अधिकार नहीं
उन्हीँ कोख के जायो पर !
आज मुंह फेर रहे हो
पर एक दिन ऐसा आयेगा
रोने को आंसू ना होंगे
मन फूट के रोना चाहेगा !
उसके दर पर देर जरूर है
अंधेर नहीं चल पायेगा
दर्पण में देखेगा खुद को
खुद को ही धिक्कारेगा !
जो निकल गया उसे भुला कर
अब आगे की सुध लेले
घर बैठे नारायण घट से
नेह सुधा छक कर पी ले !
डा इन्दिरा .✍
हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteनमन
Deleteदर्पण में देखेगा खुद को
ReplyDeleteखुद को ही धिक्कारेगा !
जो निकल गया उसे भुला कर
अब आगे की सुध लेले
घर बैठे नारायण घट से
नेह सुधा छक कर पी ले।
वाह अप्रतिम अद्भुत मीता मर्मस्पर्शी रचना
आभार मीता
Deleteमर्मस्पर्शी रचना यथार्थ को अभिव्यक्त करती हुई सुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया अभिलाषा जी
Deleteज़रा अवस्था परम पवित्र सी
ReplyDeleteढेरों अनुभव भरी हुई
ज्ञान भरी स्वर्ण गगरिया
पर ठोकर मैं धरी भई !
बहुत ही मर्मस्पर्शी। आपकी विशेषता है कि जब भी कोई सम सामयिक मसला, कोई ह्रदय स्पर्शी घटना सामने आती है तो आपकी कलम उस दर्द में भागीदारी दर्ज करने से नहीं चूकती। एक और उत्तम सृजन।
काव्य की गहराई मैं जाकर उसकी आत्मा को पहचान लेना आपके लिये बड़ा सहज है कविराज .....
ReplyDeleteऐसे काव्य ना लिखे लेखनी उस दिन का इंतजार करूं
वृद्ध आश्रम पर ताले हो परिजन साथ रहे का ध्यान धरु !
समाज के विकृत होते रिश्तों पर एक 11 वर्ष पुराने चित्र ने लम्बी बहस छेड़ दी है.
ReplyDeleteएक भावविह्वल करती सच्ची घटना पर आधारित बुज़ुर्गों की उपेक्षा और मासूम बच्ची का
सच्चाई जानकर रो पड़ना सामाजिक सरोकारों की बहस को व्यापक बनाता है.
आपने इस शब्दचित्र को भावप्रवण बनाकर समाज के समक्ष व्यापक संदेश
संप्रेषित तो किया ही है साथ में संवेदना को झिंझोड़ा भी है. लिखते रहिये.
चित्र को देख लिखने का आप का अंदाज इतना अच्छा है की रचना सीधे मन पर वार करती है ...बहुत सार्थक रचना
ReplyDelete🙏काव्य और चित्र को आप भी उसी गहराई से छूती हो मन सुकून से भर उठता है
Deleteजैसा आप जानती हो मन को छूते चित्र मेरे लेखन की सशक्त विधा है ! चित्र मुझे लेखन के लिये आमंत्रित करते है और हम मनवार के कच्चे ...सहज भाव से लिखने लगते है !
आपने सराहा ..आभार सखी नीतू
छिड़ी बहस से लगता है
ReplyDeleteमानवता अभी भी मरी नहीं
सोये भाव जगाने होंगे
सुप्त अवस्था जो सोई !
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आपकी अभिव्यक्ति ने मेरे लेखन को सार्थक कर दिया ...ये संदेश व्यापक हो यही इस काव्य को लिखने का उद्देश्य है !
वृद्ध आश्रम से कोई वृद्ध भी
जिस दिन घर अपने आ जायेगा
इन्दिरा का ये लेखन उस दिन
गरिमामय हो जायेगा !
नमन 🙏
मार्मिक चित्रण
ReplyDeleteसटीक पकड़
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