चेतावनी ...
तुम कर रहे हो
मानवता का अपमान
शायद
क्षमा कर दिये जाओ
पर ......
उस कोख का अपमान
जिससे जन्मती है मानवता
स्त्रीत्व का
इतना निर्घण अपमान
कभी क्षम्य ना होंगे तुम
ना तुम से उत्प्रेरित समाज
तुम स्वयं जा बैठे हो
उस ढहती कगार पर
जो दग्ध नारी के
हाहाकार
से दरक रही है
वक्त की पुकार सुनो
जाग्रत करो
सोये अलसाये भाव
जर्जरीत समाज के
मेरुदंड बन
उसे गर्त में जाने से
पहले संभाल लो !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
30 अगस्त 1990
सही बात
ReplyDeleteसटीक चेतावनी ।
ReplyDeleteइंसान अपने स्वार्थ में ऐसे खोता जा रहा हैं की इंसानियत शर्मसार हो रही है ....बहुत सार्थक रचना ....सुन्दर संदेश सखी
ReplyDeleteMAA se badha koi nahi hai
ReplyDeleteMAA ki dua ke bina koi kaam safal nahi hota