में में ...
चीत्कार मूक प्राणियों का
गूंज रहा नभ हो के आर्त
कैसे हो फिर गुंजित
मुबारकबाद का ये निनाद !
दलदल पर महल नहीं चिनते
ना कोहरे से तस्वीर बने
आघात दिये ना पूजन हो
ना शंख स्वर शमशान बजे !
में में का ये कर्कश सा स्वर
आक्रोश स्वर मैं गूंज रहा
सोचो समझो तब कर्म करो
में स्वयं तुम्हें हर पल कहता !
डा .इन्दिरा .✍
मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteमूक निरीह हों का आर्तनाद
ReplyDeleteऔर समझदारों का उत्सव ।
कौन पशु कौन इंसान।
लाजवाब लेखन सखी
ReplyDeleteकविता के माध्यम से सुन्दर संदेश और सीख
सार्थक लेखन