तृष्णा ..
क्षणिकाएं ...
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तृष्णा एक मीठा सा दर्द है
रह रह कसक जगाये
चुभे शूल सम हिय में भारी
ना चुभे तड़प दे जाय !
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तिस तिस तृष्णा ना मिटे
तिल तिल अगन लगाये
जिस दिन तृष्णा मिट गई
वा दिन नमः शिवाय !
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तृष्णा एक कोहरे की हवेली
दल दल मैं खड़ी लुभाय
कदम बढ़ा कर घुसना चाहे
तुरत अलोप हुई जाय !
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तृष्णा एक विभीषिका
तन पिंजर कर जाय
प्राण हरे तब ही मिटे
उससे पहले नाय !
डा इन्दिरा गुप्ता
स्व रचित
अद्भुत रचना ....👌👌
ReplyDeleteऔर पढ़ने की तृष्णा जगाये
सखी हिय प्यासा ही रह जाये
वाह वाह पूजा जी अप्रतिम प्रतिक्रिया नमन सखी
Deleteतिस तिस तृष्णा ना मिटे
ReplyDeleteतिल तिल अगन लगाये
जिस दिन तृष्णा मिट गई
वा दिन नमः शिवाय !
वाह बहुत खूब मीता!
गहरी गोता लगाती जानदार प्रस्तुति ।
तीक्ष्ण द्रष्टि को नमन मीता
Deleteसुन्दर पंक्तियाँ 👌👌👌
ReplyDeleteतिस तिस तृष्णा ना मिटे
ReplyDeleteतिल तिल अगन लगाये
जिस दिन तृष्णा मिट गई
वा दिन नमः शिवाय !!!!!!!!
वाह !!!!! बहुत ही सहजता से तृष्णा को परिभाषित करती आपकी रचना बहुत शानदार है प्रिय बहना !!! सचमुच ये जीते जी जाने वाली नहीं है | हर इंसान में थोड़ा बहुत जरुर विद्यमान रहती है और तन से आखिर साँस के साथ विदा होती होती है | सस्नेह |
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स्नेहिल आभार रेनू जी ....
Deleteकाव्य भाव में गहरे उतरी
काव्य भाव समझाय
स्नेहिल भाव समर्पित आपको
लेखन को रही बढाय !
पुनः आभार वहां रेनू जी
तिस तिस तृष्णा ना मिटे
ReplyDeleteतिल तिल अगन लगाये
जिस दिन तृष्णा मिट गई
वा दिन नमः शिवाय !
क्या गहनतम एवं गागर में सागर सी पंक्तियाँ हैं। 'वा दिन नमः शिवाय!' । सुंदर, सार्थक, अलंकारिक एवं प्रभावशाली रचना।
नमस्कार आ . मौलिक जी
Deleteआप एक सशक्त कवि के साथ साथ सशक्त टिप्पणी कार भी है ! आपकी प्रतिकिया लेखन को प्रवाह देने का कार्य करती है !
आभार कविवर ..लेखन सार्थकता को प्राप्त हुआ !
🙏
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २४ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जिस दिन तृष्णा मिट गई
ReplyDeleteवा दिन नमः शिवाय !
सची बात..पर ये मिटती कहाँ है
उम्दा.
आत्मसात
तृष्णा एक विभीषिका
ReplyDeleteतन पिंजर कर जाय
प्राण हरे तब ही मिटे
उससे पहले नाय !
बहुत ही सुन्दर ...चिन्तनीय...।
बहुत लाजवाब...
गागर में सागर
ReplyDeleteबेहतरीन क्षणिकाएं
बहुत सुंदर रचना 👌
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