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तृष्णा

तृष्णा ..
क्षणिकाएं ...
             ☝
तृष्णा एक मीठा सा दर्द है
रह रह कसक जगाये
चुभे शूल सम हिय में भारी
ना चुभे तड़प दे जाय !
                ☝
तिस तिस तृष्णा ना मिटे
तिल तिल अगन  लगाये
जिस दिन तृष्णा मिट गई
वा दिन नमः शिवाय !
                ☝
तृष्णा एक कोहरे की हवेली
दल दल मैं खड़ी लुभाय
कदम बढ़ा कर घुसना चाहे
तुरत अलोप हुई जाय !
               ☝
तृष्णा एक विभीषिका
तन  पिंजर कर जाय
प्राण हरे तब ही मिटे
उससे पहले नाय !

डा इन्दिरा गुप्ता
स्व रचित

Comments

  1. अद्भुत रचना ....👌👌
    और पढ़ने की तृष्णा जगाये
    सखी हिय प्यासा ही रह जाये

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    Replies
    1. वाह वाह पूजा जी अप्रतिम प्रतिक्रिया नमन सखी

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  2. तिस तिस तृष्णा ना मिटे
    तिल तिल अगन लगाये
    जिस दिन तृष्णा मिट गई
    वा दिन नमः शिवाय !

    वाह बहुत खूब मीता!
    गहरी गोता लगाती जानदार प्रस्तुति ।

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    Replies
    1. तीक्ष्ण द्रष्टि को नमन मीता

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  3. सुन्दर पंक्तियाँ 👌👌👌

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  4. तिस तिस तृष्णा ना मिटे
    तिल तिल अगन लगाये
    जिस दिन तृष्णा मिट गई
    वा दिन नमः शिवाय !!!!!!!!
    वाह !!!!! बहुत ही सहजता से तृष्णा को परिभाषित करती आपकी रचना बहुत शानदार है प्रिय बहना !!! सचमुच ये जीते जी जाने वाली नहीं है | हर इंसान में थोड़ा बहुत जरुर विद्यमान रहती है और तन से आखिर साँस के साथ विदा होती होती है | सस्नेह |

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    Replies
    1. स्नेहिल आभार रेनू जी ....
      काव्य भाव में गहरे उतरी
      काव्य भाव समझाय
      स्नेहिल भाव समर्पित आपको
      लेखन को रही बढाय !
      पुनः आभार वहां रेनू जी

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  5. तिस तिस तृष्णा ना मिटे
    तिल तिल अगन लगाये
    जिस दिन तृष्णा मिट गई
    वा दिन नमः शिवाय !

    क्या गहनतम एवं गागर में सागर सी पंक्तियाँ हैं। 'वा दिन नमः शिवाय!' । सुंदर, सार्थक, अलंकारिक एवं प्रभावशाली रचना।

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    Replies
    1. नमस्कार आ . मौलिक जी
      आप एक सशक्त कवि के साथ साथ सशक्त टिप्पणी कार भी है ! आपकी प्रतिकिया लेखन को प्रवाह देने का कार्य करती है !
      आभार कविवर ..लेखन सार्थकता को प्राप्त हुआ !
      🙏

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २४ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  7. जिस दिन तृष्णा मिट गई
    वा दिन नमः शिवाय !

    सची बात..पर ये मिटती कहाँ है
    उम्दा.
    आत्मसात 

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  8. तृष्णा एक विभीषिका
    तन पिंजर कर जाय
    प्राण हरे तब ही मिटे
    उससे पहले नाय !
    बहुत ही सुन्दर ...चिन्तनीय...।

    बहुत लाजवाब...

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  9. गागर में सागर
    बेहतरीन क्षणिकाएं

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  10. बहुत सुंदर रचना 👌

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