उपालम्भ ....
भौंचक रह गये ज्ञानी उधो
बुद्धि लगी चकराने
भोली ग्वालिन अनपढ़ जाहिल
कैसो ज्ञान बखाने !
तभी तमक कर बोली ग्वालिन
का आये हो लेने
मूल धन तो अक्रूर जी ले गये
तुम आये क्या ब्याज के लाने !
हमरो मारग नेह को
फूलन की सी क्यारी
निर्गुण कंटक बोय के
काहे बर्बाद कर रहे यारी !
तुम तो ज्ञानी ध्यानी उधो
एक बात कहूँ सांची
कहीं सुनी नारी जोग लियो है
का वेद पुराण नहीं बांची !
जाओ उधो और ना रुकना
बात बिगड़ जायेगी
कान्हा पर रिस आय रही है
तोपे पे उतर जायेगी !
एक तो इति दूर बैठे है
ऊपर से ज्ञान बघारे
निर्गुण सगुण को भेद बतरावे
का ..हमकू बावरी जाने !
नेह ज्ञान में एक चुननौ थो
नेह कु हम चुन लीनो
बीते उमरिया चाहे जैसी
अब नाही पालो बदलनौ !
कहना जाके अपने श्याम से
तनि चिंतित ना होये
आनो है तो खुद ही आये
और ना भेजै कोये !
डा इन्दिरा .✍
जाओ उधो और ना रुकना
ReplyDeleteबात बिगड़ जायेगी
कान्हा पर रिस आय रही है
तोपे पे उतर जायेगी !
प्रिय इंदिरा जी -- आपकी सुदक्ष लेखनी से ऊधो के साथ अनपढ़ गोपियों का ये संवाद पढ़कर मन भावुक हो गया और आपकी लेखनी के समक्ष नत हो गया | सरस और सरल भाषा में आपने उनके उपालंभ को जो शब्द दिए हैं वो अनमोल हैं | मैं चाहूं भी तो कभी इस तरह का हृदयस्पर्शी नहीं लिख पाऊँगी हालाँकि कृष्ण कथा के ये प्रसंग मुझे भी बहुत प्रिय हैं और भ्रमरगीतसार को मैंने बहुत मन से पढ़ रखा है |
कितना सुंदर लिखा आपने -- सराहना से परे !!!!!
हमरो मारग नेह को
फूलन की सी क्यारी
निर्गुण कंटक बोय के
काहे बर्बाद कर रहे यारी !
तुम तो ज्ञानी ध्यानी उधो
एक बात कहूँ सांची
कहीं सुनी नारी जोग लियो है
का वेद पुराण नहीं बांची ! !!!!!!!!
कुछ नहीं लिख पाऊँगी -- सो निशब्द नमन बस !!!!!!!! सस्नेह --
स्नेहिल आभार रेनू जी आपकी जर्रा नवाजी है अभी कलम पकड़ना सीख रही हूँ ! ...कान्हा तो मेरे बाल सखा है ! उनपर जब लिखती हूँ तो बिन प्रयास ही लेखनी चल देती है ! कान्हा पर लेखन मेरा प्रिय शगल है !
Deleteआपका लेखन तो अद्वितीय है सखी !
आपकी अद्भुत प्रतिक्रिया ने मेरे लेखन में चार चाँद लगा दिये
नमन 🙏
जाओ उधो और ना रुकना
ReplyDeleteबात बिगड़ जायेगी
कान्हा पर रिस आय रही है
तोपे पे उतर जायेगी !
एक तो इति दूर बैठे है
ऊपर से ज्ञान बघारे
बेहद खूबसूरत रचना इंदिरा जी
स्नेहिल आभार अनुराधा जी
Deleteकृष्ण प्रेमी गोपियों के विरह से व्याकुल मन की दशा का हृदयस्पर्शी शब्दचित्र उकेरा है आपने...बहुत ही सुन्दर.... बहुत लाजवाब...
ReplyDeleteवाह!!!
अतुल्य आभार सुधा जी
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअतुल्य आभार
Deleteकान्हा जी के लिए भला आपसे ज्यादा भावपूर्ण कौन लिख सकता है जी।
ReplyDeleteसरस,सुंदर मर्मस्पर्शी रचना..👌👌
आभार प्रिय श्वेता जी ..तन मन की तुम जानन हारी तभी बनी हो मीत हमारी !
Deleteका कान्हा का सखी सहेली सभी सभी सुहाये हमको प्यारी !
गोपियों से पराजित उद्धव दौडे कृष्ण के पास
ReplyDeleteउद्धव ज्ञान गठरिया समेटे
आये माधव के पास
हे मुरारी मैं हारा
तुझ प्रेम पराकाष्ठा में ही निहित
है परभव आनंद
ये आज सीखा दिया
मुझ अकिंचन को
अपढ़ प्रेम पगी गोपियन ने।
बहुत सुंदर के उदगार आपकी भक्ति रसमय लेखनी से मीता, अज्ञानी कही जाने वाली गोपियों का अनंत प्यार ज्ञानी उद्धव के परभव ज्ञान से जीत गया।
बहुत बहुत सरस भक्ति मे डूबा काव्य।
इंदिराजी, उद्धवजी और गोपियों का संवाद और उसका सार बिरलों को सहज समझ आता है.
ReplyDeleteआपने उसे सरल कर दिया जैसी सरल गोपियों की भक्ति थी.
ऊधौ मन ना भये .....
आभार
Deleteindirag . very nice , kindly add me
ReplyDeleteSANDEEP GARG ,