धुंधलाये अहसास ...
तू चल में आया जैसा नाता
बड़ा विचित्र नजर आता
साथ साथ रहते है फिर भी
यायावर सा सब लगता !
यही हो रहा सब के संग में
कोई किसी के साथ नहीं
साथ साथ रहने का भ्रम
साथी है जज्बात नहीं !
मिलों दूर नजर आते है
पास हमारे खड़े हुए
हाथ बढ़ा कर छूना मुश्किल
रूखे से व्यवहार हुए !
साफ नहीं पहचान किसी की
धुंधली सी आकृति लगे
अंजाने से धुंध के पीछे
धुंधले से अहसास लगे !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
यथार्थ को अभिव्यक्त करती है रचना 🙏 बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteसत्य प्रहार करती रचना मीता यथार्थ रचना ।
ReplyDeleteदूर दूर से नाता जोडे
पास दिये बिसराय
झुठा नेह झुठी परवाह
वाह रे झुठे संसार ।
आत्मीयता खोते समाज पर कटाक्ष 🌹🌹
ReplyDeleteवाह सखी बेहद शानदार अभिव्यक्ती .... लाजवाब रचना 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDelete