मिलन ...
बालपने की सखी सहेली
वृद्ध अवस्था जाय मिली
भूल गई पीड़ा जीवन की
एक दूजे से गले मिली !
वही ठहाका वही खुशी थी
बात बात पर था हँसना
बचपन की सुनी गलियों में
दोनों का पुनि जा बसना !
याद आ गई नीम निमोली
कच्ची अमिया का चखना
भरी दोपहरी घर के पीछे
गुट्टे के पत्थर चुनना !
खुद दादी हो गई है अब पर
बचपन की मीठी याद आई
एक एक बेर के खातिर
कितनी हमने करी लड़ाई !
निश्छल हँसी हुई प्रवाहित
कब बिछुड़ी थी भूल गई
कल जैसी बातैं लगती है
साथ खेल कर बड़ी हुई !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
कुछ क्षण ही सही सबकुछ भूलकर निश्चित ही अच्छा लगता है मन को जब कोई अचानक वर्षों बाद मिलता हो
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सत्य कविता जी ...कोई मैं यदि बचपन की सखियाँ हो तो ..पौबारह ही हो जाते है !
Deleteसखी बहुत सुंदर रचना ...सत्य कहा
ReplyDeleteबचपन के दोस्त चाहे जब मिलें
बचपन साथ ले आते हैं 👌👌👌
एकदम सत्य दोस्त दोस्त ही होता है बरसते पानी में भी आंसू पहचान लेता है !
Deleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteसब कुछ भूल कर बचपन में अगर लौट सकें तो जीवन का सबसे बहुमूल्य पल होता है ...
उम्र की सीमाओं से परे हो जाने के एहसास को लिखा है ...
काव्य आत्मा को पहचानने का आभार दिगम्बर जी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteलौट आई बचपन की बेला -
ReplyDeleteखूब लगा यादों का मेला ;
आ सखी गले मिल खिलखिलाएं -
रेन बसेरा ये जग का खेला !!!!
प्रिय इंदिरा जी दो भाग्यशाली सखियों का ये मिलन !!
दादी बन जाये या नानी छुटपन का ये स्नेह कहाँ मयस्सर !!!!!!!!!! और जिस भग्यशाली को ये मिल जाए वो भी समय के अंतिम छोर पर - उससा भाग्यशाली कौन ? बहुत ही हृदयस्पर्शी भावो से सजी ये मिलन की बेला |हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !!!!!
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteAti sundar varnan kiyaa hai . I like it.
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