पापी पेट ...
भरी दोपहरी भरा हौसाला
तपन बाहर भीतर सब एक
अगन भूख की मन झुलसाती
सूरज की आग सेंकती देह !
छोटी उम्र हौसले भारी
धूप अलाव सी जला करें
कलम उठाने वाले कर जब
बोझ ग्रहस्थी आन पड़े !
और अधिक जेठ क्या जलेगा
हिय की जलन दिन रात बढे
गुड्डे गुडिया वाली उम्र जब
रिक्शे का पैडल खींच रहे !
पापी पेट क्या क्या करवा दे
ना करवाये सो कम है
भरी दोपहरिया घाम करें क्या
चूल्हा जल जाये बस ये मन है !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
पेट क्या क्या न कर वादे वही कम ।
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी रचना।
बहुत ही भावुक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह!!! बहुत खूब सखी .... बहुत सुन्दर...हृदय स्पर्शी रचना।
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी प्रिय इंदिरा जी - सचमुच पापी पेट जो न करा दे कम है !!
ReplyDeleteपर ऐसी बेटियां वन्दनीय और पूजनीय हैं जो खतरों से भरे इस समाज में इस तरह का कौतुक रचती हैं |ये ही तो असली शक्तिरूपा दुर्गा हैं | बारम्बार नमन इस साहस को |