चंद अल्फाज ...
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हर बात पर गहरी वो नजर रखते है
वफा हो या बेवफाई कायदे से निभा लेते है !
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ना उम्र का जिक्र हो ना अल्फाजों का बंधन
यहां इश्के कशिश जारी जो देखें केवल मन !
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चंद अशआर ना चंद अजाने
इबादत है चंद अश्क दाने !
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सजदे में झुक जाना झुक कर दुआ करना
गर इश्के खताये है मंजूर खता करना !
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सजदा जिसको करते है खुदा मालूम देता है
मोहब्बत में इबादत का कहाँ मालूम देता है !
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एक गुनाह रोज सुबह शाम करता हूँ
खुदा से पहले माँ का नाम लेता हूँ !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
बहुत सुंदर रचना 👌
ReplyDeleteसुंदर भावों की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह !! ना उम्र की सीमा ना शब्दों का बंधन
ReplyDeleteउम्दा मीता
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 3 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDelete.
बहुत ही सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत खुसुरत
ReplyDeleteसजदे में झुक जाना झुक कर दुआ करना
ReplyDeleteगर इश्के खताये है मंजूर खता करना ! ..बहुत ही सुन्दर भाव...
बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteना उम्र का जिक्र हो ना अल्फाजों का बंधन
वाह!!!
बहुत भावपूर्ण रचना प्रिय इंदिरा जी -- ये पंक्तियाँ खास तौर पर कबिलेदाद हैं --
ReplyDeleteसजदे में झुक जाना झुक कर दुआ करना
गर इश्के खताये है मंजूर खता करना !
सजदा जिसको करते है खुदा मालूम देता है
मोहब्बत में इबादत का कहाँ मालूम देता है !!!!!!!!!!!! सादर --