नई फसल ...🌾
हथेली में सूर्य उगाये
नई फसल की बाली हूँ
नहीं समझना मुझको कन्या
में दुर्गा अवतारी हूँ !
शीतलता मुझमें सरिता की
पावनता गंगा जैसी
नहीं समझना केवल पानी
बिगडू तो सुनामी हूँ !
सीचो पालो दूँ उर्वरता
जग में भरदूँ मृदु सरसता
उठा लिया गर हाथ गडासा
महाकाल कोलाहल हूँ !
जागो और ध्यान से देखो
लिये हथेली सूर्य चली में
चाहो तो प्रकाश उर भर लो
जली तो में दावानल हूँ !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
बहुत अच्छा लिखा सखी
ReplyDeleteबहुत उम्दा और गहरी सोच।
सीचो पालो दूँ उर्वरता
ReplyDeleteजग में भरदूँ मृदु सरसता
उठा लिया गर हाथ गडासा
महाकाल कोलाहल हूँ ! खूबसूरत रचना इंदिरा जी 👌
वाह क्या कहने मीता बहुत जोश और नारी महत्व को बतातीं सुखद रचना ।
ReplyDeleteबहुत उम्दा और गंभीर सृजन
ReplyDeleteजागो और ध्यान से देखो
ReplyDeleteलिये हथेली सूर्य चली में
चाहो तो प्रकाश उर भर लो
जली तो में दावानल हूँ !!!
सचमुच ऐसी ही होनी चाहिए नारी की हुंकार !! तभी कोई उसका महत्व जान पायेगा | सार्थक सृजन के लिए आभार प्रिय इंदिरा जी |