उठो आर्य ...✊✊
उठो आर्य अब बाना पहनो
वीर कर्ण और अर्जुन सा
दो क्या चार हाथ धारण कर
दमन करो अरि मुन्डो का !
अन्दर बाहर दावानल है
जन मानस हो रहा विकल
रक्त नदी बहने के खातिर
आतुर है अति और प्रबल !
धरा मांगती कर्ज पुत्रों से
उठो अब कर्ज चुकाना है
जब तक रक्त ना प्लावित होता
धरती कहाँ उर्वरा है !
कौरव पांडव _ द्वापर त्रेता
बहुत सुनी है कथा कहानी
मधुसूदन ने शंख बजाया
देश हित माँगी कुर्बानी !
अब कथा नहीं करतब होगा
मातृ भूमि तन अर्पण होगा
विश्व विजय का रक्त बीज हो
विश्व विजय करना ही होगा !
फूंक मार जूफान जगा दो
पद प्रहार कोलाहल हो
लोहे से लोहा टकराये
मन भीतर अंगार हो !
पढ़ कर ज्वाल जले ना दिल में
हर बाजू ना फड़क उठे
व्यर्थ लेखनी का प्रवाह तब
व्यर्थ मेरा आव्हान लगे !
डा इन्दिरा .✍
स्व रचित
9 .9 . 2018
अब कथा नहीं करतब होगा
ReplyDeleteमातृ भूमि तन अर्पण होगा
विश्व विजय का रक्त बीज हो
विश्व विजय करना ही होगा !
बेहद खूबसूरत रचना
🙏अतुल्य आभार अनुराधा जी
Deleteबहुत सुन्दर और ओज पूर्ण रचना..
ReplyDeleteवाह लाजवाब हूंकार भरती ओज मय रचना मीता जैसे फिर माधव का आह्वान।
ReplyDeleteवीर रस की ओजपूर्ण रचना प्रिय इंदिरा जी | सचमुच ऐसा जोश देश के वीरों में पल पल अपेक्षित है | सादर --
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